Book Title: Anekant 1939 11
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 47
________________ वीर-शासनमें स्त्रियोंका स्थान [ले०–श्रीमती सौ० इन्दुकुमारी जैन 'हिन्दीरत्न' ] माजसे करीब ढाई हजार वर्ष पहले जब कि इस दूर किया । फलतः श्रापके धर्मसंघमें पुरुषोंकी अपेक्षा देशका वातावरण दूषित हो गया था, कोरे स्त्रियोंकी संख्या बहुत अधिक रही। क्रियाकाण्डोंमें ही धर्म माना जाता था, वैदिक मिशनके एक बात यहां पर और भी नोट कर लेनेकी है, पोपोंने स्त्रियों और शूद्रोंके धार्मिक अधिकार हड़प लिये और वह यह कि भारतमें तात्कालिक विषम परिस्थिथे, वेदमन्त्र पढ़ने या सुनने पर उन्हें कठोर प्राणदण्ड तियोंको सुधारनेके लिये उस समय एक दूसरा सम्प्रदाय तक दिया जाता था-वेदमन्त्रका उच्चारण भी स्त्रियाँ भी उठ खड़ा हुआ था, जिसके प्रवर्तक महात्मा बुद्ध थे नहीं कर सकती थीं; तब स्त्रीसमाजकी मानसिक दुर्ब- और जो अपने स्वतंत्र विचारोंके द्वारा उन प्रचलित लताको देखकर धर्मके ठेकेदारोंने जो जो जुल्म किये उन व्यर्थके अधर्मरूप क्रियाकाण्डोंका विरोध करते थे, वर्णसबको लेखनीसे लिखना कठिन ही नहीं किन्तु असंभव व्यवस्था एवं जातिभेद तथा याज्ञिक हिंसाके विरुद्ध है । उन्हें केवल बच्चे जननेकी मशीन अथवा भोगकी अहिंसाका उपदेश देते थे । इतना सब कुछ होते हुए एक चीज़ ही समझ लिया गया था, जिससे स्पष्ट मालूम भी उन्हें स्त्रियोंको अपने संघमें लेने में संकोच एवं भय होता है कि उस समय स्त्रीसमाजका भारी अधःपतन अवश्य था, वे तद्विषयक विरोधसे घबराते थे, इसीलिये होचुका था । स्त्रीसमाज उस समय अपने जीवनकी देशकी उक्त परिस्थितिका मुकाबला करनेके लिये वे सिसकियाँ ले रहा था, उसमें न बल था न साहस और तय्यार नहीं हुए। किन्तु कुछ समय बाद वीरशासनमें न अध्यवसाय, मानो स्त्रीसमाज पतनकी पराकाष्टाको स्त्रियोंका प्राबल्य देखकर उसके परिणामस्वरूप तथा पहुँच गया था। अपने प्रधान शिष्य आनन्द कौत्स्यायनके विशेष आग्रह ऐसी परिस्थितिमें भगवान महावीरने जन्म लेकर करने पर महात्मा बुद्धने अपने संघमें स्त्रियोंको लेना संसारमें धर्मके नाम पर होनेवाले अधर्मको, जाति तथा स्वीकार किया था। वर्णभेदकी अंधपरम्पराको और मिथ्या रूढ़ियों के साम्रा- इन्हींसव विशेषताओं के कारण भगवान वीरका शाज्यको छिन्न भिन्न किया, उनके प्रवर्तकोंको समझाया सन चमक उठा था, उसमें जातिभेद और वर्णभेदकीगन्ध और जनसमूहके अंधविश्वासको हटाकर उनमें बल तक भी नहीं थी और न ऊँच-नीच प्रादिकी विषमता । तथा साहसका संचार किया। साथ ही, शूद्रों, स्त्रियों उनकी समवसरण सभामें सभीको समान दृष्टि से देखा और पशुओं पर होनेवाले विवेकहीन अत्याचारों- जाता था और इसीसे सभी स्त्री-पुरुष तथा पशु पक्षी जुल्मोंको दूर किया और स्त्रियोंको अपने चतुर्विध संघमें तक अपनी अपनी योग्यताके अनुसार वीरके. शासनमें खास स्थान देकर उनके धर्मसेवनकी सब रुकावटोंको रहकर अपना अपना प्रात्म-विकास कर सकते थे।

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