Book Title: Anekant 1939 11
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 57
________________ कार्तिक, वीरनिर्वाण सं०२४६६] मनुष्योंमें उच्चता-नीचता क्यों ? ५५ मनुष्य ही ऐसे रह जाते हैं जिनमें बाह्य साधन सामग्री इसीलिये जो मनुष्य साधु हो जाता है उसके उस अवके परिवर्तनसे वृत्ति-परिवर्तनकी सम्भावना पायी जाती स्थामें कुलसंज्ञा नहीं रहती है। इसलिये यह निश्चित है। जैसे इस भरतक्षेत्रके आर्यखंडमें जब तक भोग- है कि एक भंगा भी अपनी वृत्तिसे उदासीन होकर भूमिका काल रहा तब तक बाह्य साधनसामग्री भोग- यदि दूसरी उच्च वृत्तिको अपना लेता है तो भूमिकी तरह उच्च वृत्तिके ही अनुकूल रही, कर्मभूमिके उसके अपनायी हुई उच्च वृत्तिके अनसार गोत्र प्रारम्भ हो जाने पर उन्हींकी संतानके वृत्तिभेदका का परिवर्तन मानना ही पड़ेगा । इसी परिवर्तनके प्रारम्भ हुआ और पहिले कहे अनुसार वृत्तिभेदसे सबसे कारण ही दार्शनिक ग्रन्थों में ब्राह्मणत्व, क्षत्रियत्व आदिमें पहिले इनका विभाग ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र जातित्वकी कल्पनाका बड़ी खूबीके साथ खंडन किया इन चार जातियों ( वर्णों ) में हुआ, बादमें इनके भी गया है । अवान्तरभेद वृत्तिभेद के कारण होते चले गये तथा एक ही इस प्रकार इस लेखसे यह अच्छी तरह स्पष्ट हो प्रकारकी वृत्तिके धारण करने वाले नाना मनन्य होने के जाता है कि पार्यखंडके मनष्य उच्च और नीच दोनों कारण ये सब भेद जाति अथवा कुल शब्दसे व्यवहृत प्रकारके होते हैं। शूद्र हीनवृत्तिके कारण व म्लेच्छ किये जाने लगे और वृत्ति के आधार पर कायम हुए ये क्रूर वत्तिके कारण नीचगोत्री, बाकी वैश्य, क्षत्रिय ही कुल अथवा जातियां भविष्यमें पैदा होने वाले मनु- ब्राह्मण और साधु स्वाभिमान पूर्ण वृत्तिके कारण उच्च प्योंकी वृत्ति के नियामक बन गये। फिर भी बाह्यसाधन- गोत्री माने जाते हैं और पहली वृत्तिको छोड़कर यदि सामग्रीके बदलने की सम्भावना होनेसे इनमें वृत्तिभेद कोई मनुष्य या जाति दूसरी वृत्तिको स्वीकार कर हो सकता है और वृत्ति-भेदके कारण गोत्र-परिवर्तन लेता है तो उसके गोत्रका परिवर्तन भी हो जाता है, भी अवश्यंभावी है । ऐसे कई दृष्टान्त मौजूद हैं जैसे भोगभूमिकी स्वाभिमानपूर्ण वृत्तिको छोड़कर यदि जो किसी समय क्षत्रिय थे वे आज वैश्य माने जाने लगे आर्यखंडके मनुष्योंने दोनवृत्ति और क्रूरवृत्तिको अपनाया हैं। पद्मावतीपुरवालों में जो अाजकल पंडे हैं वे किसी तो वे क्रमशः शूद्र व म्लेच्छ बनकर नीचगोत्री कहलाने जमानेमें ब्राह्मण होंगे परन्तु आज वे भी वैश्योंमें ही लगे। इसी प्रकार यदि ये लोग अपनी दीन वृत्ति अथवा शुमार किये जाते हैं । ब्राह्मण, क्षत्रिय,वैश्य और शूद्रों में क्रूर वृत्तिको छोड़कर स्वाभिमानपूर्ण वृत्तिको स्वीकार परस्पर यथायोग्य विवाह करनेकी जो आज्ञा शास्त्रों में कर लें तो फिर ये उच्चगोत्री हो सकते हैं । यह परिबतलायी है वहां पर विवाही हुई कन्याका गोत्र परिवर्तन नर्तन कुछ कुछ अाज हो भी रहा है तथा श्रागममें भी मानना ही पड़ता है और इसका कारण वृत्तिका परि- बतलाया है कि छठे काल में सभा मनुष्यों के नीचगोत्री वर्तन ही होसकता है और यही कारण है कि म्लेच्छुक- हो जाने पर भी उत्सर्पिणीके तृतीय कालकी श्रादिमें न्याओंका चक्रवर्ती आदिके साथ विवाह हो जानेपर वृत्त उन्हींकी संतान उच्चगोत्री तीर्थकर आदि महापुरुष परिवर्तन हो जानेके कारण ही दीक्षाका अधिकार उनको उत्पन्न होंगे। श्रागममें दिया गया है। इसी परिवर्तनकी वजहसे ही , अत्यधिक लम्बाई हो जानेके कारण इस लेखको धवल के कर्ताने कुलको अवास्तविक बतलाया है और यहीं पर समाप्त करता हूँ और पहिले लेख में कही हुई * इस वाक्य तथा अगली कुछ पंक्तियों परसे लेखक- जिन बातों के ऊपर इस लेखमें प्रकाश नहीं डाल सका महोदयका ऐसा अाशय ध्वनित होता है कि प्रायः वृत्तिको हूँ उनके ऊपर अगले लेख द्वारा प्रकाश डालनेका अाश्रित गोत्र का उदय है गोत्रकर्म के उदयाश्रित वत्ति प्रयत्न करूंगा। साथ ही, जिन श्रावश्यक बातोंकी श्रीर नहीं है। क्या यह ठीक है ? इसका स्पष्टीकरण होना टिप्पणी द्वारा संपादक अनेकान्तने मेरा ध्यान खींचा है चाहिये। -सम्पादक उनपर भी अगले लेख द्वारा प्रकाश डालंगा।

Loading...

Page Navigation
1 ... 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144