Book Title: Anantki Anugunj Author(s): Pratap J Tolia Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation View full book textPage 8
________________ नीरव, निस्पन्द दशा में, वचन और मन के मौन की आनन्दावस्था में उस अंतर्यात्रा के उन्नत प्रदेशों में संचरण के समय इस गूंज से उठनेवाले आन्दोलन अपने अंतर्लोक में प्रतिध्वनित होते हैं और इन प्रतिध्वनियों से उठती रहती हैं मेरे आहतनाद की गुनगुनाहट भरी अनुगूँजें । मौन तब मुखर होता है, 'निःशब्द' तब 'शब्दस्थ ' होता है, बेशक अल्पांश में ही । अन्तर्यात्रा के पथ पर गुरुजनों के एवम् उस अज्ञात सत्ता के अनुग्रहों से और अपनी अनुभूतियों से उठनेवाली ऐसी कुछ अनुगूँजों का संग्रह है यह संकलन । साहित्य का अल्प अभ्यासी, अंतर्पथ का एक अदना - सा यात्री और उस अनाहत नाद का एक दूरस्थ श्रवणार्थी होने से, अज्ञात की उन गूँजों का में एक छोटा सा अनुगूँजक हूं । बड़ों के अनुग्रह से और अपने पुरुषार्थ से अन्तर्यात्री के भीतरी कानों में जब उस गूँज को सुनने - समझने की श्रवणक्षमता और सजगता आ जाती है तब वह गूँज सहज ही कुछ कुछ सुनाई देने लगती है और अन्तर्लोक में उसकी प्रतिध्वनियाँ अनुगूंजित होने लगती हैं । यही है थोड़ा सा इतिहास - आपके समक्ष प्रस्तुत इन अनुगूँजों का । 1 मैं चिरकाल के लिए अनुगृहित हूँ उन महान आत्माओं का, जिन की गूंजों ने मेरी अनुगूँजों को जागरित किया । मैं अनुगृहीत हूं वैशाली प्रिंटर्स के संचालकों का, जिन्होंने इस संग्रह को सूक्ष्मता व कलात्मकता से मुद्रित किया । यदि ये मेरी अनुगूँजें किसी अभीप्सु की एकाध अनुगूँज को भी अनुप्रेरित कर सकीं तो मैं कृतार्थ होऊंगा । 'अनंत', १२, केम्ब्रिज रोड, अलसूर, बेंगलोर - ८. प्रताप कुमार ज. टोलिया, 'निशान्त' 18-1-1972Page Navigation
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