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प्रगटो, अब मोरे प्राण !
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प्रगटो प्रगटो प्रगटो प्रगटो अब मोरे प्राण ! प्रभु, प्रगटो अब मोरे प्राण ! मोहे प्रास रही न आन प्रगटो ! कितने गुज़रे चाँद-सितारे, और कितने दिनमान; बैठा हूँ मैं राह में तेरी, लिए दरश की ठान,
प्रगटो ॥ १ ॥
चला खोजता नज़र नज़र में : नगर नगर में : डगर डगर में, तेरा रूप महान; तेरा ठिकाना कोई न बतावे घर तेरा अनजान,... प्रगटो ॥ २ ॥
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ये तन की दीवारें, ये मन की मूरत,
पर ना उनमें तेरी सूरत; तोड़ के इन सीमाओं को अब, कर दो अनुसंधान, प्रगटो ॥ ३ ॥
भवन भीतर का गूँज उठा है, जाग रहा है ज्ञान; उठतीं आवाजें पल पल परः 'अपने को पहचान' प्रगटो ॥ ४ ॥
अनंत की अनुगूंज
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