Book Title: Anantki Anugunj
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 48
________________ मौन - अनंत का वातायन ! यह भव्य निलय है मौन भवन, होता है जहाँ निज प्रात्म - मिलन, नहीं रूप, रंग, नहीं शब्द स्फुरण, यहाँ एक निगूढ़ नीरव गुंजन ! संवादिता का सातत्य जहाँ और विसम्वाद का विसर्जन, सजग स्थिति है चेतन की, उलझन उन्माद का उन्मूलन, आदि - अंत का सम्मिलन यह, अपनेपन का अनुकूलन, क्रिया संग का है शमन यह, प्रतिक्रिया का प्रतिफलन । दर्शन अपना, शोधन अपना, ‘कोऽहम्?' का यह उन्मीलन, तन-मन - बुद्धि - चित्त - हृदय के पार अंतस् का अनुशीलन !

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