Book Title: Anantki Anugunj
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 46
________________ भीतर की पीड़ा भीतर ही सही, न उन को, न औरों को कही, चिठ्ठी अनप्रेषित अधूरी रही, और वे तो चल बसे अपने धाम ! लिखी चिट्ठी .... सुना था उन्हीं के मुख उस दिन, 'पतियां, बातें अनकहीं जिन जिन, पहुँचती हैं जरूर कमी एक दिन ।' पहुँचेगी मेरी किस दिन ? ....किस जनम ? ..... किस ठाम ? लिखी चिट्ठी .... किन्हें सुनायें ? दिल में कितनी आग भरी है, कितने दर्द और दुःखड़े। किन्हें सुनायें अपनी कहानी, कहां हैं ऐसे मुखड़े ? अनंत को अनुगूंज

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