Book Title: Anantki Anugunj
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 52
________________ अब लौ लगी है ऐसी हर संचरण-भ्रमण में, वह साथ है निरन्तर प्रहरी-सा हर चरण में, करता है प्रश्न पल पल, तन-मन के हर वरण में: 'क्या कर रहा ? क्यों है यहां? तू कौन संक्रमण में?' तब तोड़ रहा है कोई मूर्छा, अहं, करण में, और जोड़ रहा है कोई निद्रा को जागरण में : ___ मैं कौन ....? मैं कौन .... ? मैं कौन ... ? उत्तर मिला न कोई, क्षण क्षण के संसरण में, और गूंजता है प्रश्न, हर चरण और वरण में : मैं कौन ... ? मैं कौन ....? मैं कौन .... ? अंतिमा 'एक गूंज उठी, अनुगूंज उठी, .. नीरव-सागर से एक बूंद उठी ।' अनंत को अनुगूंज ४८

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