Book Title: Anantki Anugunj
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 39
________________ ४५ कारण, हेतू, भ्रान्ति रहित यह, आकांक्षा आशा का उन्नयन, ज्ञात के पार प्रवेश है यह, अज्ञात देश का अनुगमन । रहा भटकता भ्रान्त मनुज, निज परिधि में प्राकू पुरातन, इन सीमाओं के पार क्षितिज, और आयाम अदृष्ट सनातन, सांत - ससीम में होता रहा है, अब तक उसका आप्यायन, यह मौन भवन असीम अनंत का, बना हुआ है एक वातायन ! हस्ती हस्ती ही बोलती है और मस्ती ही डोलती है, राज़ों को खोलती है, प्राणों को घोलती है । अनंत की अनुगूंज

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