Book Title: Anantki Anugunj
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 30
________________ वहां नहीं पहुँचना है, पहुँचा जाता भी नहीं .... भ्रम में हैं वे जो वैसा दावा करते हैं। क्या वे उस पगले की ही स्मृति नहीं दिलाते, जो कि, कमी न कभी सीढ़ी पर चढ़ कर, फिर, सीढ़ी को ही देता हो गाली ? आखिर डर क्यों है बाहर के दीपों का ? क्या भीतरीदीप जलाने का लक्ष्य रखकर बाहर का दीप जलाया नहीं जा सकता ? और यदि केवल बाहर का दीप ही बाधारूप है, तो बाहर की सारी योगप्रवर्तना - मन-वचन-कर्म के कार्य व्यापार - को भी बाधारूप क्यों नहीं माना जाता? उसे ही क्यों नहीं रोका जाता ? केवल भीतरीदीप के ही जलाने की बात तो तब ही सर्वथा सच हो सकती है जब कि, सारे जीवन व्यापार सर्वथा स्थगित हो जाये, शमित हो जायँ, 'स्वरूप' में संस्थित हो जाये ! और शेष रह जाए केवल अंतस् - का दीप, केवल उसकी अखण्ड, अक्षय, अक्षुण्ण लौ । अनंत को अनुगूंज

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