Book Title: Anantki Anugunj
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 27
________________ वेदना का ज्वार अंतस् के सागर से उठता है, उमड़ता है, वेदना का ज्वार : । टकराता है सीमाओं की दीवारों से, लांघ कर पार जाता है किनारों से, और मौन ही लौट आता है मिनारों से, और खो जाता है सागर में । कुछ क्षण बीते कि वह फिर उठता है, उमड़ता है, टकराता है, झकझोर देता है-स्थूल की दीवारों को, और तोड़ देता है जीर्ण शीर्ण किवाडों को, आवृत्त कर तट की रेतों को, उन्मुक्त प्रदेशों को....! और वह उठता ही रहता है, उमड़ता ही रहता हैलगातार, तार-बेतार, कतार की कतार, सागर के पार, दिवस और रात, संध्या और प्रात, तब तक, कि जब तक वह कर न दे अशेष: शून्यशेष, परिशेष, समग्र सीमाओं को ! क्या सचमुच, तब तक वह उठता ही रहेगा ? उठता ही रहेगा ? उमड़ता ही रहेगा ? अनंत को अनुगूंज

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