Book Title: Anantki Anugunj
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ कौन है वह मौन ? प्रश्न एक उठा अंतस् से : "तू कौन है?' फिर रुक कर पूछा उसी ने : क्यों मौन है?' तब मौन में ही कहा किसी ने : ___ कैसे कहुँ जब में ही नहीं जानता कि, मुझ में कौन है जो मौन है?' और मौन ने प्रारंभ की तब खोज छिपे उस कौन' की, तलाश ही लेता चला भीतर के कोने-कोने की : मैं कौन ....? मैं कौन ....? मैं कौन ? पर अभी भी प्रत्युत्तर था मौन .... | अंत में किसी शून्य वेला में हुआ अनुभव, समाधान, अमिन : 'मैं भिन्न हूँ मैं मित्र, सर्वथा भिन्न न कहीं तल्लीन न कहीं दीन-हीन; __ मैं मित्र हूँ मैं भिन्न, सर्वथा मिना !' अनंत को अनुगूंज

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54