________________
खण्डहरों में ख्वाहिशों के ख्वाहिशों के खण्डहरों में,
खाक खुदी की खोजता हूँ ... ! अंगारे - सी खुदी ने खुद, ख्वाहिशों का महल रचाया, अरमानों के रंगरूपों से, भर भर उसको खूब सजाया, कैसे अचानक किन शोलों ने, उसको है क्यों करके जलाया? देखके हालत खण्डहर की खुद, यह तो रहा मैं सोचता हूं .... !
ख्वाहिशों के खण्डहरों में .... १
खड़ा खण्डहर दूर बेचारा, खिड़कियों से कराह रहा है,
आहें भरता निःश्वासों में, दिन रात जिसने दाह सहा है,
अनंत की अनुगूंज