________________
६/ अमीरसधारा पुरुषार्थ किसमें है ? जो जैन बन गया, वह जिन नहीं बन सकता क्योंकि जैन वही है, जो जिन का अनुयायी होता है। अनुयायी का काम होता है अपने आराध्य जिन की पूजा कर लो, उसके चरण पूज लो, उसकी स्तुति कर लो। यह गौतम का मार्ग है। यही वह मार्ग है, जो जिनत्व की अंतिम मंजिल तक पहुंचने में रोड़ा है। इससे जिनेश्वर का अनुग्रह मिल सकता है, पर जिन नहीं बना जा सकता। जिनत्व के कर्म कुछ और ही होते हैं। महावीर जैसा व्यक्ति ही जिन-मार्ग का पथिक हो सकता है।
भला, जो लोग लौकिक सुखों में, शारीरिक सुखों में उलझे हों, क्या वे जिनमार्ग पर चल सकते हैं ? बाहर की यात्रा करने के अभ्यस्त हैं, अतः भीतर की यात्रा अंधे की यात्रा लगती है। बाहर की रोशनी से परिचित हैं, कभी भीतर की रोशनी भी देखने का प्रयास करें। भीतर सैकड़ों सूर्यों का प्रकाश है। 'कस्तुरी कुंडल बसै, मृग ढूंढे वन मांहि ।' भीतर को जाना नहीं, तो बाहर ही ढूंढेंगे, बाहर ही भटकेंगे इसलिए क्योंकि घर में अंधेरा है, तो सूई बाहर ढूंढते हैं, क्योंकि बाहर में प्रकाश है। पर सूई मिलेगी भीतर आने से, जिनत्व के प्रकाश में।
एक व्यक्ति ने कुछ बच्चों से पूछा, क्या तुम लोग गोल्डन ब्रिज के बारे में जानते हो ? बच्चों ने कहा नहीं साहब। तो वह व्यक्ति बोला, 'दिन भर घर में ही पड़े रहते हो, बाहर घूमो तो पता लगे।' बच्चे बिचारे कुछ न बोले। दूसरे दिन उस व्यक्ति ने फिर उन बच्चों से पूछा क्या तुम लोग जोर्ज टाउन के बारे में जानते हो ? बच्चों ने कहा, नहीं साहब । तो वह व्यक्ति फिर बोला, दिन भर घर में ही पड़े रहते हो, कभी बाहर जाओ तब पता लगेगा। बच्चे चुप रहे।
वह व्यक्ति रोजाना उन बच्चों के पास आता और कुछ न कुछ पूछता और कहता घर में ही पड़े रहते हो, बाहर घूमा करो। आखिर बच्चे तंग आ गये। एक दिन बच्चों ने उस व्यक्ति से पूछा, क्यों
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org