Book Title: Amiras Dhara
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 40
________________ जिनत्व : गंगासागर से गंगोत्री की यात्रा / ३३ से। जिस चीज को ढूंढना है, उसे पहले अपनी जेब में ढूंढ लो। वहाँ न मिले, तो बाहर जाना। पर लोग हैं, जो बाहर जाते हैं, स्व को पर में ढूंढते हैं। 'कस्तूरी कुंडल बसै'-मृग की नाभि में ही है कस्तूरी। पर मृग ढूँढे वन माहि—पर हरिण उसे जंगल में ढूँढता है। आओ, अपने आप में, कस्तूरी पाने के लिए, आत्मा से जुड़ने के लिए। भले ही कस्तूरी दिखाई न दे, भले ही भीतर की साधना तमसावृत लगे पर कस्तूरी को ढूंढना अपने पास ही पड़ेगा, आत्मप्रदीप भीतर ही है। घर में खोई सूई को घर में ही ढूँढना होगा, भले ही घर में अँधियारा हो। बाहर का प्रकाश काम न देगा, भीतर के लिए। राबिया वसी के बारे में प्रसिद्ध है कि एक बार वह अपनी कुटिया के बाहर कुछ ढूँढ रही थी। उसी समय उसकी कुटिया के पास से दो-चार संत गुजरे, फकीर लोग। फकीरों ने राबिया से पूछा, माँ ! क्या ढूँढ रही हो ? राबिया ने कहा, सूई खो गई, ढूँढ रही हूँ। संत-फकीरों ने सोचा माँ बूढ़ी है, हमें भी सूई ढूँढ निकालने में मदद करनी चाहिये। तो फकीर लोग भी ढूँढने लगे सूई को। बहुत ढूँढा, पर मिली नहीं। आखिर तंग आकर एक फकीर ने कहा, माँ ! सूई मिल नहीं रही है। गिरी कहाँ थी ? राबिया बोली, गिरी तो कुटिया में थी। सभी फकीर अचम्भे में पड़ गये। उन्हें बुढ़िया की मूर्खता पर और अपनी मूर्खता पर भी हँसी आई। सोचने लगे, बुढ़िया ने हमको खूब बनाया। बुढ़िया के पीछे हम भी उल्लू बन गये। एक फकीर ने कहा, माँ ! क्या तूं पागल हो गई है ? सूई कुटिया में खोई है और ढूंढ रही है कुटिया के बाहर। अरे, जब कुटिया में ही सूई खोई है, तो जा कुटिया में ही ढूँढ । राबिया ने कहा; तुम लोग बात तो ठीक कह रहे हो पर क्या करू कुटिया में अँधियारा है। बाहर में प्रकाश है। इसलिए बाहर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86