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६० / अमीरसधारा
टाइम और स्पेस से अलिप्त है यह । वैज्ञानिकों ने आत्मा को जानने का, उसे पकड़ने का प्रयास किया, पर सफलता हाथ न लगी ।
वैज्ञानिकों ने कांच के कमरे में एक मृतप्रायः जोवित व्यक्ति को बन्द किया। कांच के कक्ष में हवा का आवागमन भी नहीं था । डॉक्टर- वैज्ञानिकों ने उस व्यक्ति को अपनी आंखों के सामने मरते देखा, पर वे उस शक्ति को न पकड़ पाये, जिसको वजह से व्यक्ति जिन्दा था। चूंकि आत्मा अमूर्त है, अरूपी है, अतः वे उसे हासिल न कर पाये । पर उस शक्ति को, सॉल को, विल पावर को नामंजूर नहीं किया, जिसके कारण मनुष्य जीवित था ।
व्यव
आत्म-स्वीकृति के बाद अब प्रश्न यह उठता है कि आत्मा एक है या अनेक । कतिपय दार्शनिकों की मान्यता है कि हम आत्मा के अस्तित्व पर तो विश्वास करते हैं, किन्तु आत्म- भिन्नता पर विश्वास नहीं करते । उनका कहना है कि विश्व की सारी आत्माएँ एक हैं । वे न तो अलग-अलग हैं, ओर न ही उनमें कोई भिन्नता है । हारतः वे अलग-अलग और भिन्न-भिन्न दिखाई देती हैं, किन्तु तात्विक दृष्टि से उनमें न तो भिन्नता है, न पृथकता । जैसे सरोवर में से एक घड़ा जल बाहर निकालने पर उसके रूप-रंग में भेद दिखाई देता है, पर हकीकत में सरोवर का जल और घड़े का जल एक-सा है । यदि हम घट - जल को सरोवर में उड़ेल दें, तो उसका रूप अलग कहाँ रहेगा ?
मगर जब हम इस बात पर गहराई से विचार करते हैं, तो हमें आत्मा की एकता बाधित होती हुई लगती है । पुण्यमूलक, पापमूलक भिन्न-भिन्न विचारों को देखते हुए एकात्मवाद की स्थापना उचित नहीं लगती । यदि सारी आत्माएँ एक हैं, तब तो सबका वैचारिक प्रवाह और कर्म-प्रवाह एक-सा होना चाहिये । जब कि संसार में प्रत्येक प्राणी के विचार भिन्न-भिन्न होते हैं । प्रत्येक दर्शन की मान्यताएँ भिन्न
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