Book Title: Amiras Dhara
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 80
________________ आत्मा की सत्ता : अनछुई गहराईयाँ / ७३ ‘उद्धरे दात्मनात्मानम्' आत्म-दर्शन का स्वर्णिम सूत्र है । इस सम्बन्ध में मैं अपनी ही एक कविता सुनाता हूँ - आओ अन्तर के मन्दिर में, जीर्णोद्धार कर हम इसका । कर प्रतिष्ठा आत्म देव की, इसमें ईश निहित है सबका || करते जो उद्धार लोक का, वे क्यों परम सत्य यह विस्मृत - जीवन का उद्धार जगत् में, अपना तो अपने पर निर्भुत ॥ आत्म- बिम्ब बन जाये निर्मल, प्रतिबिम्बों में कहाँ सत्यता । आत्म विजेता ही जग - जेता, चूमेगी पद सकल सफलता ॥ हमारे दारोमदार हम ही हैं, हमारी आत्मा ही है । आत्मा के बलबूते पर ही साधना और साध्य के महल बनाये जाते हैं । जो लोग आत्म-दर्शन के अभिलाषी हैं, वे जरा पहचाने अपने-आपको, अपनी शक्ति को । Jain Education International - आत्मा की शक्ति प्रबल है । हरेक बुलबुले की आत्मा शक्तिशाली सागर है । क्षुद्र से क्षुद्र जीव में भी आत्म-शक्ति की, आत्म- चैतन्य की अनन्त ज्योति समाहित है । शक्ति का बाहरी स्रोत यान्त्रिक हो सकता है, किन्तु मूल स्रोत आत्मा ही है, ऊर्जा ही है । इसलिए आत्म-शक्ति ही सर्वोत्तम शक्ति है, यही ऊर्जा का अनन्य पुंज है, यही जीवन का सम्बल है । आत्म-शक्ति के बिना जीवन जीवन नहीं रहता, जीव निष्प्राण हो जाता है । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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