Book Title: Amiras Dhara
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 84
________________ आत्मा की सत्ता : अनधुई गहराईयाँ/७७ तक कोई नहीं गया। उन्होंने बताया है कि आत्मा ज्ञायक है। आत्मा जाननेवाला है । आत्मा ज्ञाता है। उसमें ज्ञेयकृत अशुद्धता नहीं है। इसलिए एक बात हमेशा याद रखें कि आत्मा ज्ञेय नहीं है, वस्तु नहीं है ; जान सकें, ऐसी नहीं है । स्वयं को, आत्मा को कभी भी ज्ञेय की भाँति नहीं जाना जा सकता। इसलिए जब तक कुछ भी ज्ञेय बचा रहे, तब तक यही समझिये कि हम अभी तक पर से जुड़े हैं। जब सारे ज्ञेयों से हम अशेष हो जायें, फिर जो शेष बचे, वही स्व है, वही आत्मा है, वही ज्ञान है। इस दशा को आँकने के लिए ही 'आत्म-ज्ञान' शब्द का प्रयोग होता है। वास्तव में वहाँ आत्मा ही ज्ञानरूप होती है और ज्ञान भी आत्मा रूप होता है। जिस क्षण हमारी जिन्दगी में ऐसा क्षण आये, जब सारे ज्ञेय अशेष हो जाये, उस क्षण यदि स्वयं भगवान् भी मिले, तो उन्हें भो ज्ञेय समझ लेना और उनको दूर हटा देना। आखिरकार आप स्वयं अपने को भगवद् स्वरूप पायेंगे यानी आप ही भगवान् बन जायेंगे। ROB Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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