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६२ / अमीरसधारा बराबर नहीं है। क्योंकि अग्नि की चिंगारी निरुद्ध श्य और स्वाभाविक है। अतः ब्रह्म से जीव के व्युच्चरण की बात घटित नहीं होती, क्योंकि ब्रह्म से जीव का व्युच्चरण सप्रयोजन एवं सोद्देश्य है।
वास्तव में आत्मा स्वयं एक मौलिक तत्त्व है। आत्मा की उत्पत्ति अन्य किसी से नहीं हुई। यदि यह माना जाए कि आत्मा का जन्मस्थान ब्रह्म है, तो यह प्रश्न उपस्थित होना भी स्वाभाविक है कि ब्रह्म का उत्पत्ति-स्थान क्या है ? जैसे ब्रह्म का कोई उत्पत्ति-स्थान नहीं है, क्योंकि वह अनादि-अनन्त है, वैसे ही आत्मा का भी कोई उत्पत्ति स्थान नहीं होना माना जा सकता है। कारण, आत्मा भी अनादि है। अनुत्पन्न तत्त्व का आदि रूप नहीं होता।
भौतिकवादियों के अनुसार आत्मा की उत्पत्ति भौतिक तत्त्वों के सम्मिश्रण से हुई है। जबकि भौतिक तत्त्व जड़ हैं। जड़ से आत्मा की उत्पत्ति बाधित होती है। क्योंकि जड़ से चेतन तत्त्व पैदा नहीं हो सकता। यह एक सहज अनुभवगम्य तथ्य है। भला, जब भौतिक तत्व ही अचेतन हैं, तो उनके संयोग से सचेतन आत्मा कैसे पैदा होगी। जब भौतिक तत्त्वों में चेतना नहीं है, तो उससे निर्मित होने वाले शरीर में भी चेतनता नहीं हो सकती। इसलिए शरीर का आधार आत्मा है। आत्मा के कारण ही शरीर में गति आदि क्रियाएँ संचरित होती हैं।
शारीरिक इन्द्रियां पृथक्-पृथक् हैं। प्रत्येक इन्द्रिय अपने विषय का ही ज्ञान करती है। जैसे आँखें रूप का ही ज्ञान करती है, न कि रस का। पाँचों इन्द्रियों के विषयों का समन्वित रूप में ज्ञान करने वाला और कोई तत्त्व अवश्य है, उसी को आत्मा कहते हैं। शरीर, मन, इन्द्रियाँ, श्वासोच्छ्वास, वचन आदि भौतिक हैं। ये चेतन के संसर्ग से चेतनायमान होते हैं। हमारे इस शरीर का निर्माण और विकास जीव के द्वारा ही होता है। क्योंकि आत्मा निमित्त
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