Book Title: Amiras Dhara
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 55
________________ ४८/ अमोरसधारा ___तो आप यह सोचिये कि जब व्यक्ति देह में रहकर, देहातीत होकर वैचारिक ध्यान में समर्पित हो जाता है, तो उसके शरीर द्वारा भी वैसी क्रियाएँ होने लगती है, जो उसके विचारों में थी। जब व्यक्ति विचारों में खोया रहता है, तो उसे पता भी नहीं चलता कि शरीर में या शरीर के बाहर कुछ हो रहा है या नहीं। बहुत बार ऐसा होता है कि कोई हमें आवाज देता है, पाँच बार आवाज देता है, मगर वह आवाज हमारे कानों को छू कर भी लौट जाती है। क्योंकि हम, हमारी चेतना, हमारे चैतसिक सारे व्यापार–सभी किसी विचार में लगे हुए थे। जब अचानक चेतना लौटती है, उस आवाज को पकड़ती है, तो हम हक्के-बक्के रह जाते हैं। साध्वी विचक्षणश्री को मैंने देखा कि छाती में कैंसर, भयंकर कसर। पर उसने कभी ध्यान भी नहीं दिया उस ओर। खून बहता, मवाद गिरता, पानी रिसता, पर देहातीत अवस्था पा ली थी उसने। बताया जाता है कि काशी-नरेश का आपरेशन हुआ। चिकित्सकों ने बेहोश करना चाहा, मगर उन्होंने बेहोश होने से इन्कार कर दिया। वे गीता पढ़ने लगे। गीता में इतने तल्लीन हो गये कि उन्हें पता भी न चला, कि कब आपरेशन पूरा हुआ। जब आदमी विचारों में, अन्तर विचारों में ही रमने लग जाता है, तो वह महर्षि रमण बन जाता है। उसे पता नहीं चलता कि मैं शरीर हूँ। उसका अनुभव उसे भीतर की यात्रा कराता है। वह पाता है कि मैं शरीर नहीं हूँ, शरीर से परे हूँ। ___लोग सिनेमा हॉल जाते हैं। आखिर सामने पर्दा है, सत्य नहीं हैं। पर फिल्म देखते-देखते व्यक्ति उद्विग्न हो जाता है, कामुक हो जाता है, आँसू ढाल बैठता है। जब कि पता है; कि जो देख रहा हूँ, वह सत्य नहीं, मात्र पर्दा है, अभिनय है। पर वह अभिनय भी व्यक्ति के विचारों को प्रभावित कर देता है और अपने साथ उसे भी बहा ले जाता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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