________________
३८/ अमीरसधारा
जीवन का अंतरंग और बहिरंग, अध्यात्म और विज्ञान भी भिन्नभिन्न तो है, पर दोनों ही जीवन के अंग हैं, मानवीय मस्तिष्क की उपज हैं। इसलिए दोनों में विरोध और द्वन्द्व नहीं है। व्यतिरिकी तो हैं, पर मित्र हैं परस्पर ।
वैसे अध्यात्म और विज्ञान दोनों ही विज्ञान है। अध्यात्म आत्मा का विज्ञान है और विज्ञान प्रकृति का विज्ञान है। अध्यात्म अंतरंग की धारा का प्रतिनिधि है और विज्ञान बहिरंग धारा का। विज्ञान चलता है अणु से लेकर खगोल-भूगोल आदि के प्रयोगों पर, और अध्यात्म चलता है अंतरंग की गहराइयों पर, चेतना की शक्तियों पर। इसलिए बाहर को समझने के लिए विज्ञान सहयोगी है, तो भीतर को समझने के लिए अध्यात्म सहयोगी है। दोनों पूरकता लिए है।
विज्ञान में तथ्य को समझा जाता है और अध्यात्म में, ध्यान से तथ्य का अनुभव किया जाता है। विज्ञान अपने से बाहर की यात्रा है और अध्यात्म बाहर से भीतर की यात्रा है। विज्ञान बाहर की खोज करता है, अध्यात्म/ध्यान भीतर की खोज करता है। विज्ञान परकीय तथ्यों को उभारता है, अध्यात्म स्वकीय तथ्यों को उजागर करता है। वास्तव में अध्यात्म शुद्धात्मा में विशुद्धता का आधारभूत अनुष्ठान है।
नहा कुम्मे सअंगाई, सए देहे समाहरे ।
एवं पावाई मेहावी, अझप्पेण समाहरे ॥ सूत्रकृतांगसूत्र में कहा है कि जैसे कछुआ अपने अंगों को अपनी देह में समेट लेता है, वैसे ही ज्ञानी लोग पापों को अध्यात्म के द्वारा समेट लेते हैं।
अध्यात्म अर्थात् ध्यान। यह वह साधना है, जो स्वयं पर लगे हुए परदों को, ऊपरी आवरणों को, अन्तर-स्रोत की चट्टानों को, चूंघट
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org