Book Title: Amiras Dhara
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 22
________________ जिनत्व : गंगासागर से गंगोत्री की यात्रा | १५ नौका घिरी भँवर के मध्य, पर्वती लहरों का सान्निध्य । गंगा-सागर तरफ प्रवाह, समय वर्षा का, नीर अथाह ॥ मुझे नहीं जाना पारावार, पहुँचना गंगोत्री के पार । जहाँ से फूटी गंगा धार, प्रसारित गंगा का संसार ॥ बहूँ जो मैं धारा के संग, प्रतिष्ठा होए भुजा की भंग । धार के संग बहे जो जीव, जीवितों में वह है निर्जीव । करें यात्रा गंगोत्री ओर, नहीं हम दुश्मन से कमजोर । .. चलो अब धारा के विपरीत, नहीं हारेंगे, निश्चित जीत ॥ संघर्ष ही जीवन की रौनक है। भला, बिना संघर्ष के कभी सत्य-प्राप्ति हुई है। बहती हुई गंगाधार के साथ बहना मुर्दापन है । जीवन की जीवन्तता और भुजाओं का सम्मान तो गंगोत्री की यात्रा करने में है, जहाँ से गंगा का जन्म हुआ। अपने मूल रूप को खोजो, अपने घर को खोजो, अपने घोंसले में आओ, दूसरे के महलों में रहना स्वतन्त्रता खोना है। यदि महल पाना है, यदि विराट होना है, गंगा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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