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२६ / अमीरसधारा ऐसे होते हैं, जो सुख की सच्ची पहचान रखते हैं और उस सुख को पाने के लिए प्रयास करते हैं।
___ वास्तविक सुख भी एक बूंघट में छिपा रहता है। लेकिन यह चूंघट हर आदमी को लुभाने वाला नहीं होता। हर आदमी के लिए तो यह डराने वाला और भगाने वाला होता है। इस चूंघट के त्याग, तपस्या, ध्यान, समाधि के बोर्डर लगे रहते हैं। इसीलिए इस चूंघट को तो कोई विरली आत्माएँ ही पसन्द करती हैं। सच कहूँ तो ऐसे लोग ही सच्चे स्वार्थ को साधं पाते हैं। दिलीप जैसे राजा ही कामधेनु का आर्शीवाद पा सकते हैं। जिस व्यक्ति के भीतर दिलीप जैसा प्रयत्न है, वही रघु को पा सकता है, उसी का स्वार्थ सध सकता है।
वशिष्ठ ने दिलीप से कहा, जाओ तुम इस कामधेनु गाय की सेवा करो, अपनी माँ समझकर। यही तुम्हें वर देगी। दिलीप लग गया गाय की सेवा में अपनी पत्नी के साथ। पति-पत्नी ने बहुत सेवा की गाय की। दिलीप जैसा गौ-भक्त कोई नहीं हुआ, जो गाय को बचाने के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने के लिए उतारु हो जाता है । सिंह प्रकट हुआ। उसने कहा, मैं गाय को मारूँगा। दिलीप ने विरोध किया। उसने बहुत बड़ी बात कह दी कि गाय माता को तुम नहीं मार सकते, जब तक मैं जिन्दा हूँ। सिंह ने कहा, मुझे शिव ने भेजा है, मैं गाय का संहार अवश्य करूंगा। मैं आया हुआ, खाली नहीं जा सकता दिलीप बोला, यदि तुम वापस नहीं जा सकते, तो मुझे ले जाओ, मेरा भक्षण कर लो, मुझे मार दो। यह ऋषि की गाय है। इसकी रक्षा करना ऋषि की रक्षा करना है। ऋषि का आदेश है मुझे, इसकी सेवा करना, इसकी रक्षा करना।
सिंह ने कहा-राजन् ! तुम कैसी मूर्खता की बात कह रहे हो। एक गाय के लिए तुम अपना जीवन समाप्त कर रहे हो ? इस गाय के मरने से तुम्हें कोई हानि नहीं होगी, पर तुम्हारे मर जाने से
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