Book Title: Amiras Dhara
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 37
________________ ३० / अमीरसधारा रहने दो, पत्ते रहने दो, तना रहने दो, पर जड़ें काट दो, पेड़ अपने आप सूख जायेगा, पत्ते, तने, डालियाँ अपने आप सूख जायेंगे । एक गमला लीजिये । गमले के तले में कुछ छेद कर दीजिये । उसमें मिट्टी डालिये, बीज डालिये, सोंचिये, पौधा लग जायेगा कुछ दिन में । ज्यों-ज्यों पौधा उपर बढ़ता है, त्यों-त्यों उसकी जड़ें भी नीचे से बढ़ती हैं। आप एक प्रयोग कीजिये । उस पौधे की जड़ें, जो गमले के छेंदों से बाहर निकलेंगी, बाहर निकली जड़ों को काट दें । आप पायेंगे कि पौधे का बढ़ना रुक गया। यदि आप हर सप्ताह उसकी जड़ों को, बाहर निकली जड़ों को काटते रहेंगे, तो आप पायेंगे कि वर्षों बोत जाने पर भी पौधा उतना ही रहा, बढ़ा नहीं । इसीलिए जो पेड़ जितना बड़ा होगा, उसकी जड़ें भी उतनी ही बड़ी होंगी । कलकत्ते के बोटोनिकल गार्डन में, मद्रास के बोटोनिकल गार्डन में जो संसार प्रसिद्ध पेड़ हैं, उनकी वृहत्ता की आधारशिला उनकी जड़ें ही हैं, गहरे से गहरी पैठी हुई । जैसे जड़ें हैं मुख्य पेड़ की, वैसे ही ध्यान जड़ है साधुता के तरुवर की । साधु है, संत है, जब तक ध्यान है, तभी तक साधुता है, संतता है। ध्यान से च्युत होने वाला साधु पूर्ण साधु नहीं है, वह मुक्तिका पांथ नहीं है । वास्तविक ज्ञान की उपयोगी क्रिया ही ध्यान है । क्रिया 1 में नहीं आया ज्ञान भार है । साधु ज्ञान और क्रिया दोनों का बिम्बप्रतिबिम्ब है, सम्मेलन है, संगम है । साधु यानी स्वार्थी, महास्वार्थी । महास्वार्थी अर्थात् स्व के लिए, आत्मा के लिए करने वाला, और बड़े जोर-शोर से करने वाला । इसीलिए साधुता की जड़ें ध्यान में पैठी हुई हैं । जब ध्यान का रस, ध्यान का लगाव, ध्यान का अनुराग कम होगा, तो यही समझिये कि व्यक्ति के भीतर साधुता का रस, स्वत्व का लगाव, अध्यात्म का अनुराग कम हो गया । जो ध्यान में लगा है, वही सच्चा साधु है, और वही अपने स्वार्थ के लिए कुछ-न-कुछ करता है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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