Book Title: Amiras Dhara
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 27
________________ २०/ अमीरसधारा लाये ? युवक ने धीरे से कह दिया, ना। श्वशुर बोला, 'क्या बात है, बिना सूचना दिये तुम आ गये। कोई खास बात है क्या? वह बोला, 'जी'। श्वशुर बोला, 'घर पर सब कुशल तो है न ? लड़का बोला 'ना'। श्वशुर ने कहा, क्यों पिताजी बीमार है क्या ? तो वह बोला 'जी'। श्वशुर ने कहा, बचने की उम्मीद तो है ? उसने कहा, 'ना'। तो फिर कैसे, मुझे बुलाने आये हो क्या ? श्वशुर ने फिर पूछा। तो वह बोला 'जी'। श्शुवर ने कहा यदि ऐसी बात है तो चलो। दोनों चल पड़े। श्वशुर जब दामाद के घर पर पहुंचा तो देखा कि दामाद के पिता तो स्वस्थ हैं। श्वशुर के मुँह से दामाद के पिता ने जब अपने बेटे की सारी करतूत सुनी तो वे भौंचक्के रह गये। आखिर पिता ने बेटे को समझाया कि बेटे ! जी-न केवल ऐसे बोलने मात्र से कुछ नहीं होता है। यदि कोई भी व्यक्ति जी-न को भली प्रकार से समझ ले तो उसका बेड़ा पार है। यदि जी-ना का विपरीत ज्ञान हो गया तो वह हिटलर की तरह नाजी हो जायेगा या वह भारत माता का अंग भंग करने वाला जिन्ना बन जायेगा। ___तो हमें समझना है जिन को। उसकी अतल गहराइयों में जाकर समझना है। जिन किसी एक व्यक्ति की संज्ञा नहीं है। ऋषभ, नेमि, पाव, महावीर-केवल ये ही जिन नहीं है। बहुत सारे लोग जिन बन चुके हैं। आप भी जिन बन सकते हैं। यह कोई बपौती नहीं है। इस मामले में सब स्वतन्त्र हैं। कोई किसी की कठपुतली नहीं है, जो किसी के नचाये नाचता रहे । दुनिया का हर आत्म-विजेता जिन है । तो बनो जिन, शुरु हो यात्रा जिनत्व की पगडंडी पर, हूँ ढो जिनत्व के मोती पैठ सागर में गहरे। जो ढूंढे, वही पाये। जो बैठे रहे, वे रोये। कबीर की गहरी संत-वाणी में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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