Book Title: Amiras Dhara
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 19
________________ १२ / अमीरसधारा पाया, वह उस चीज को नहीं जीत पाया, जिसके निकल जाने पर लोगों ने उसे कब्रखाने में दफ़ना दिया। महावीर ने नहीं की विश्व-विजय, पर फिर भी वे विश्व-विजेता सिकन्दर से श्रेष्ठ हैं, क्योंकि उन्होंने अपने-आप को जीता, निज में जिन को खोजा। सिकन्दर विश्वविजय करने के बाद भी अशान्त था, क्योंकि उसने शान्ति ढूँढी बाहर। महावीर प्रशान्त थे आत्म विजय करके । क्योंकि उन्होंने शान्ति को ढूंढा अपने भीतर । 'कस्तूरी कुंडल बसै मृग ढूँढी वन माँहि । उस हिरन की दौड़ बेकार है, जो कस्तूरी को पाने विश्व-वन में भटकता है । अरे, जिस चीज को तुम खोज रहे हो, वह तुम्हारे खीसे में है। सूई की खोज घर में करो, वह घर में ही खोई थी, भले ही घर में अँधियारा हो। बाहर का प्रकाश, बाहर की दौड़, बाहर का चकाचौंध भटका रहा है व्यक्ति को जिनत्व होने से। जिनत्व का पथ असिधारा है, विरले ही चल पाते हैं। जो चलते हैं आत्मदेव के दर्शन वे कर पाते हैं । कब का सोया अन्दर में वह, देव जगाना है उसको । धन्य धन्य वह जिनत्व की यह अर्थ-चेतना है जिसको ॥ कवि कहता है जिसके पास जिनत्व की अर्थ-चेतना है, वह धन्य है। जिनत्व की चेतना जीवन की सर्वोच्च स्थिति है। यह स्थिति ब्रह्मनाद की स्थिति है, परमात्म-दर्शन की स्थिति है, महाजीवन और मोक्ष की स्थिति है। जहाँ केवल विजय है, हार का नामो निशान भी नहीं। मात्र निर्धूम ज्योति रहती है, पवित्रता, पूर्णता एवं शुद्धता । यानी प्योरिटी, सब्लाइमिटी। यहाँ न राग है न द्वेष, न क्रोध है न मान, न इच्छा है न दुःख । यहाँ तो बस हम होते हैं और हमारा राज्य होता है, बिना किसी को मारे काटे विजय होती है। इसी का नाम है आत्म-विजय। इसी को कहते हैं जिन । जिनत्व से रिक्त व्यक्ति चलता-फिरता 'शव' है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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