Book Title: Ambad Charitra
Author(s): Amarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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अंबम
चरित्र
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लोका हृष्टाः, ततोऽनंतर कुलचंइतपस्विना स्वमंत्रशक्त्या सप्तनिर्दिनैर्नृपो मनुष्यरूपोपेतः कु- तः. तदा प्रधानैमिलित्वा नगरमध्ये महोत्सवो विदितः. ततस्तेन कुलचंइतपस्विना राझे वैराग्यमयो धर्मोपदेशो दत्तः, यथा
संपदो जलतरंगविलोला। यौवनं त्रिचतुराणि दिनानि ॥ शारदानमिव चंचलमायुः । | तजनाः कुरुत धर्ममनिंद्यं ॥१॥ इति धर्मोपदेशं निशम्य वैराग्यवासितमानसेन नृपेण स्व. पुत्राय राज्यं दत्वा निजराइया सह तापसव्रतं गृहीतं, वनमध्ये च स तपःक्रियां कर्तुं लसः. एवं कतिचिदिवसानंतरं राझा निजपत्नी सगी दृष्ट्वा तस्यै पृष्टं, नो देवि इदं तपोव्रतदूषणकारकं त्वया किं विहितं ? तत् श्रुत्वा लज्जावनतवदनया तया कश्रितं हे स्वामिन् श्यं मेम नोत्पनिदवाससत्कैव वर्तते, तपोव्रतगृहणावसरे च मया धर्मातरायप्रादुर्भावनयन्नीतया तस्वरूपं नवन्यो न प्रकटीकृत. तत् श्रुत्वा राजा मौनमवलंव्य तत्रैव वने स्थितः. संपूर्णदिनैस्तयैका महामनोहररूपधारिणी पुत्री प्रसूता. तदैव राझी तु सूतिकारोगाक्रांता पंचत्वं प्राता.तदनंतरं तपोव्रतव्याकुलमानसेनापि राज्ञा सा वन्यमहिष्यादीनां दुग्धपानपूर्वकं वृद्धिनीता
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