Book Title: Agam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 21
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सचित्तकम्मं तु गामसामिस्सा दोण्हंपि दंडकरणं विवरीयऽण्णेणुवणओ ॥४॥ जह नरवइणो आणं अइकमंता पमायदोसे। पावंति बंधवहरोहछिज्जमरणावसाणाई॥५॥ तह जिणवराण आणं अइकमंता पमायदोसेणी पावंति दुग्गइपहे | विणिवायसहस्सकोडीओ॥६॥ तित्थगरवयणकरणे आयरिआणं कयं पए होइ। कुजा गिलाणगस्स 3 पढमालिय जाव बहिगमण॥७॥ जइ ता पासत्थोसण्णकुसीलनिण्हवगाणंपि देसिअंकरणी चरणकरणालसाणं सब्भावपरंमुहाणं च॥८॥ किं पुण जयणाकरणुजयाण दंतिंदिआण गुत्ताणं?। संविग्गविहारीणं सव्वपयत्तेण कायब४९॥भाध्या एवं गेलनहा वाघाओ अह इयाणि भिक्खट्ठा। वइयग्गामे संखडि सत्री दाणे य भद्दे य॥८५॥ उव्वत्तणमध्यत्तं च पडिच्छे खीरगहण पहगमणे। वोसिरणे छकाया धरणे मरणं दवविरोहो॥६॥खद्धादाणिअगामे संखडि आइन खद्ध गेलन्नोसण्णी दाणे भद्दे अप्पत्तमहानिनादेसु॥७॥पड्डच्छिखीर सतरं घयाइ तकस्स गिण्हणे दीह। गेहि विगिंचणियभया निसट्ट सुवणे य परिहाणी॥८॥ गामे परितलिअगमाइमम्गणे संखडी छणे विरूवा। सण्णी दाणे भद्दे जेमण विगई गहण दीहं॥९॥ अह जग्गइ गेलनं अस्संजयकरण जीववाघाओ। इच्छमणिच्छे मरणं गुरुआणा छड्डणे काया॥९०॥ तकोयणाण गहणे गिलाण आणा( बाला )इया जढा होति। अप्पत्तं च पडिच्छे सोच्चा अहवा सयं नाउं॥१॥ दूरुट्ठिअखुड्डलए नव भड अगणी अपंत पडिणीए। अप्पत्तपडिच्छण पुच्छ बाहिं अंतो पविसिअव्वं ॥२॥ कक्खडखेत्तचुओ वा दुब्बल अद्धाण पविसमाणो वो खीराइगहण दीहं बहुं च उवमा अयकडिल्ले ॥३॥ जे चेव || ॥श्री ओपनियुक्तिसूत्र॥ | १० पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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