Book Title: Agam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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गिहत्थसद्दाइ चिट्ठाए ॥ २ ॥ दिन्ना उ ताउ पंचवि रेहाउ करेइ देइ (न्त )व गणंति। देह इओ मा य इओ अवणेह य एत्तिया भिक्खा ॥३॥ सद्दा (ड्ढा)इएस साहू मुच्छं न करेज गोयरगओ यो एसणजुत्तो होज्जा गोणीवच्छो गवत्तिव्व ॥४॥ ऊसवमंडणवग्गा न पाणियं वच्छए नविय चारि। वणियागम अवरहण्हे वच्छगरडणं खरंटण्या ॥५॥ पंचविहविसयसोक्खक्खणी वहू समहियं गिहं तं तु । न गणेइ गोणिवच्छो मुच्छिय गढिओ गवत्तंमि ॥६॥ गमनागमणुक्खेवे भासिय सोयाइइंदियाउत्तो। एसणमणेसणं वा तह जाणइ तम्मणो समणो ॥७॥ महईए संखडीए उव्वरियं कूरवंजणाईयं । परं दद्रूण गिही भइ इमं देहि पुण्णट्टा ॥८॥ तत्थ विभागुद्देसियमेवं संभवइ पुव्वमुद्दिट्ठ । सीसगणहियट्ठाए तं चेव विभागओ भगइ ॥ २३ ॥ भा० । उद्देसियं समुद्देसियं च आएसियं समाएसी एवं कडे य कम्मे एक्केक्कि चउक्कओ भेओ ॥९॥ जावंतियमुद्देसं पासंडीणं भवे समुद्देस । समणाणं आएसं निग्गंथाणं समाएसं ॥ २३० ॥ छिन्नमछिन्नं दुविहं दव्वे खेत्ते य काल भावे या निष्फाइयनिष्पन्नं नायव्वं जं जहिं कमइ ॥ १ ॥ भत्तुव्वरियं खलु संखडीए | तद्दिवसमन्नदिवसे वा । अंतो बहिं च सव्वं सव्वदिणं देहि अच्छिन्नं ॥ २ ॥ देहि इमं मा सेसं अंतो बाहिरगयं व एगयरं । जाव अमुगत्ति वेला अमुगं वेलं च आरम्भ ॥३॥ दव्वाईछिन्नंपि हु जइ भई आरओऽवि मा देह। तो कम्पइ छिन्नंपि हु अच्छिन्नकडं परिहरति ॥४॥ अमुगाणंति व दिज्जउ अमुकाणं मत्ति एत्थ उविभासा। जत्थ जईण विसिट्ठो निद्देसो तं परिहरति (रिज्जा ) ॥५ ॥ संदिस्त जो सुइ कप्पए तस्स सेसए ठवणा। संकलिय साहणं वा करेंति असुए इमा मेरा ॥६॥ मा एयं देहि इमं पुट्टे सिद्धमि तं परिहरति । जं दिन्नं ॥ श्री पिण्डनिर्युक्ति सूत्रं ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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