Book Title: Agam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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होमायवितहकरणे नजइ जह सोत्तियस्स पुत्तोत्ति वसिओ वेस गुरुकुले आयरियगुणे वसूएइ॥९॥ सम्ममसम्मा किरिया अणेण रणाऽहिण व विवरीया। समिहामंताहुइठाण जागकाले य घोसाई ॥४४०॥ उगाइकुलेसुवि एवमेव गणमंडलप्पवेसाई || देउलदरिसणभासाउवणयणे दंडमाईया॥१॥ कत्तरि पओअणावेक्खवत्थुबहुवित्रेसु एमेवो कम्मेसु य सिप्पेसु य सम्ममसम्मेसु सूईयरा॥२॥ समणे माहणि किवणे अतिही साणे य होइ पंचभए। वणि जायणत्ति वणिओ पायप्पाणं वणेइत्ति॥३॥ भयभाइवच्छगंपिव वणेइ आहारमाइलोभेणीसमणेसु माहणेसु य किविणाऽतिहिसाणभत्तेसु॥४॥निगंथ सकतावस गेरुयं आजीव | पंचहा सभणा। तेसि परिवेसणाए लोभेण वणिज को अप्पं?॥५॥ भुंजंति चित्तकम्भट्ठिया व कारुणिय दाणरुइणो यो अवि
कामगद्दभेसुवि न नस्सई किं पुण जईसु?॥६॥ मिच्छत्तथिरीकरणं उग्गमदोसा य तेसु वा गच्छे । चडुकारऽदिन्नदाणा पच्चत्थिग |मा पुगो इंतु ॥७॥ लोयाणुग्गहकारिसु भूमीदेवेसु बहुफलं दाणी अवि नाम बंभबंधुसु किं पुण छक्कम्मनिरएसु?॥८॥ किवणेसु तुम्मणे(ब्बले)सु र अबंधवायंकजुंगियंगेसुं। पूयाहिज्जे लोए दाणपडागं हरइ दिंतो॥९॥ पाएण दे लोगो उवगारिसुपरिचिएसु झुसिएसोजो पुण अद्धाखिन्नं अतिहिं पूएइ तं दाणं॥४५०॥अवि नाम होज सुलभो गोणाईणं तणाइ आहारो। छिच्छिक्काच्याणं नहु सुलहो होइ सुणहा( गा)॥१॥ केलासभवणा एए, आगया गुज्झगा महि। चरति जक्खरूवेणं, पुयाऽपूया हियाऽहियः॥२॥ | एएण मन्झ भावो दिह्रो लोए पणामहेनमि। एक्वेच्छे पुव्वुत्ता भद्दगपंताइणो दोसा॥३॥ एमेव कागमाई साणग्गहणेण सूइया होति। श्री पिण्डनियुक्ति सूत्र॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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