Book Title: Agam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassa garsuri Gyanmandir
3 दव्वे दुहा 3 बहि अंतो। भिक्खं चिय हिंडतो संजोयंतमि बाहिरिया॥६॥ खीरदहिसूवकट्टरलंभे गुडसप्पिवडगवालुंके। अंतो ३ || तिहा पाए लंबण वयणे विभासा 3॥७॥ संयोयणाए दोसो जो संजोएइ भत्तपाणं तु दव्वाई रसहे वाघाओ तस्सिमो होइ॥८॥ संजोया 3 भावे संजोएऊण ताणि दव्वाई। संजोयइ कम्मेणं कम्मेण भवं तओ दुक्ख॥९॥ पत्ते य उरलंभे भुत्तव्वरिए य सेसगमणट्ठा दिट्ठो संजोगो खलु अह कमो तस्सिमो होइ॥६४०॥रसहे पडिसिद्धो संयोगो कप्पए गिलाण जस्सव अभत्तछंदो सुहोचिओऽभाविओ जो य॥१॥ बत्तीस किर कवला आहारो कुच्छिपूरओ भणिओ। पुरिसस्स महिलियाए अट्ठावीसं भवे कवला॥२॥ एत्तो किणाइ हीणं अद्धं अद्धद्धगं च आहारंग साहुस्स बिंति धीरा जायामायं च ओमं च ॥३॥ पगामं च निगाभ च जो पणीयं भत्तपाणमाहारे। अइबहुंय अइबहुसो पमाणदोसो मुणेयव्वो॥४॥ बत्तीसाइ परेणं पगाम निच्चं तमेव उ निकामी जं पुण गलंतनेहं पणीयमिति तं बुहा बेति॥५॥ अइबहुयं अइबहुसो अइप्पमाणेण भोयणं भोत्तुं। हाएज्ज व वाभिज्ज व मारिज व तं अजीरंत॥६॥बहुयातीयमइबहुं अइबहुसो तित्रि तित्रि व परेणीतं चिय अइप्यमाणंभुंजइ जंवा अतिप्पंतो॥७॥हियाहारा मियाहारा, अप्पाहारा य जे नरा।न ते विजा तिगिच्छंति, अप्पाणं ते तिगिच्छगा॥८॥ तेल्लदहिसमाओगा अहिओ खीरदहिकंजियाणं चा पत्थं पुण रोगहरं न य हेऊ होइ रोगस्स॥९॥ अद्धमसणस्स सव्वंजणस्स कुजा दवस्स दो भागे। वाउपवियारणहा छब्भायं ऊणयं कुजा॥६५०॥ सीओ उसिणो साहारणो य कालो तिहा मुणेयव्यो। साहारणमि काले तत्थाहारे इमा मत्ता॥१॥ सीए दवस्स एगो ॥श्री पिण्डनियुक्ति सूत्र
पू. सागरजी म. संशोधित
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 140 141 142 143 144 145 146 147