Book Title: Agam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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| पडिवक्खस्स अभावे नियमा उ भवे तयग्गहणं॥४॥सच्चित्ते अच्चित्ते भीसग उम्भीसगंमि चउभंगो।आइतिए पडिसेहो चरिमे भंगमि भयणा ॥५॥ जह चेव य संजोगा कायाणं हेतुओ य साहरणे। तह चेव य उम्मीसे होइ विसेसो इमो तत्थ॥६॥ दायव्वमदायव्वं च दोऽवि दवाई देइ मीसे। ओयणकुसुणाईणं साहरण तयनहिं छोढुं ॥७॥ तंपिय सुक्के सुक्कं भंगा चत्तारि जह 3 साहरणे। अव्यबहुएऽवि चउरो तहेव आइन्नऽणाइन्ने॥८॥ अपरिणयंपिय दुविहं दव्वे भावे य दुविहमेक्केक्कं दव्वंमि होइ छक्कं भावंमि य होइ सझिलगा॥९॥ जीवत्तंमि अविगए अपरिणयं परिणयं गए जीवे दिलुतो दुद्धदही इय अपरिणयं परिणयं तं च ॥६१०॥ दुगमाई सामन्ने जइ परिणमई 3 तत्थ एगस्सा देभित्ति न सेसाणं अपरिणयं भावओ एय॥१॥एगेण वावि एसिं मणमि परिणामियं न इयरेणी तंपि हु होइ अगिझं सझिलगा सामि साहु वा॥२॥ घेत्तव्यमलेवकडं लेवकडे मा हु पच्छकमाई। न य रसगेहिपसंगो इअ वुत्ते चोयगो भणइ॥३॥ जइ पच्छकम्मदोसा हवंति मा चेव भुंजऊ सययो तवनियमसंजमाणं चोयग! हाणी खमंतस्स॥४॥ लितंति भाणिऊणं छम्मासा हायए चउत्थं तो आयंबिलस्स गहणं असंथरे अप्पलेवं त५॥ आयंबिलपारणए छा खविऊणी जइ न तरइ छम्मासे एगदिणूणं तओ कुण३॥६॥ एवं एक्केक्कदिणं आयंबिलपारणं खदेऊणी दिवसे दिवसे गिण्ह3 आयंबिलमेव. निल्लेव॥७॥ जइ से न जोगहाणी संपइ एसे व होइ तो खमओ। खमणतरेण आयंबिलं तु नियमं तवं कुणइ॥८॥ हेट्ठावणि कोलसगा सोवीरगकूरभोइणो मणुया। जइ तेऽवि जति तहा किं नाम जई न जाविति?॥९॥ तिय सीयं सभणाणं तिय ॥श्री पिण्डनियुक्ति सूत्र।
पू. सागरजी म. संशोधित
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