Book Title: Agam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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लोणदगअगणिवत्थीफलाइमच्छाइ सजिय हत्थंमि। पाएणोगाहणया संघट्टण सेसकाएण॥९॥ खणमाणी आरभए मज्जइ धोयइ व सिंचए किंचिो छेयविसारणमाई छिंदइ छठे फुरुफुरुते ॥५९०॥ छक्कायवग्नहत्था केई कोलाइकवलइयाई। सिद्धत्थगपुष्पाणि य सिरंमि दिवाइं वनंति॥१॥अने भणंति दससुवि एसणदोसेसु नत्थि तगहणी तेण न वज भनइ नणु गहणं दायगग्गहणा॥२॥ संसजिमम्मि देसे संसजिमदव्वलित्तकरमत्ता। संचारो ओयत्तण उक्खिप्यतेऽवि ते चेव॥३॥ साधारणं बहूणं तत्थ उ दोसा जहेव अणिसिद्धे। चोरियए गहणाई भयए सुण्हाइ वा दंते॥४॥ पाहुडिठवियगदोसा तिरिउड्ढमहे तिहा अवायाओ। धम्मियमाई ठवियं परस्स परसंतियं वावि॥५॥अणुकंपा पडिणीयट्ठया व ते कुणइ जाण माणोऽविीएसणदोसे बिइओ कुणइ उ असढो अयाणंतो॥६॥ भिक्खामित्ते अवियालणा उ बालेण दिजमाणंमि। संदिढे वा गहणं अइबहुय वियालणेऽणुना ॥७॥2 पहु थरथरते थरिए अत्रेण दढसरीरे वा। अव्वत्तमत्तसड्ढे अविभले वा असागरिए॥८॥ सुइभद्दगदित्ताई दढग्गहे वेविए जरंमि सिवे। अवधरियं तु सड्ढो देयंधोऽन्त्रेण वा धरिए॥९॥ मंडलपसूतिकुट्ठीऽसागरिए पाउयागए अयलेो कमबद्ध सवियारे इयरे बिढे असागरिए॥६००॥ पंडग अप्पडिसेवी वेला थणजीवि इयर सव्वंपि। उक्खित्तमणावाए न किंचि लग्गं ठवंतीए॥१॥
पीसंती निम्पिटे फासुं वा घुसुलणे असंसत्ती कत्तणि असंखचुन चुनं वा जा अचोक्खलिणी॥२॥ उव्वणिऽसंसत्तेण वावि अट्ठीलए न घटे। पिंजणपमहणेसु य पच्छाकम्म जहा( हिं) नत्थि॥३॥ सेसेसु य पडिवक्खो न संभवइ कायगहणमाईसु। ॥ श्री पिण्डनियुक्ति सूत्र।
पू. सागरजी म. संशोधित
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