Book Title: Agam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 136
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सच्चित्तो चेव पुढवि निक्खित्तो। आऊतेउवणस्सइसमीरणतसेसु एमेव॥२॥ एमेव सेसयाणवि निक्खेवो होइ जीवकायकाएसुं।|| एकेको सट्टाणे परठामे पंच पंचेव॥३॥ एमेव भीसएसुवि भीसाण सचेयणाण निक्खेवो। मीसाणं भीसेसु य दोण्हंपिय होइ अच्चित्ते॥४॥ जत्थ उ सचित्तमीसे चउभंगो तत्थ चअसुवि अगिझोतं तु अणंतर इयरं परित्तऽणंतं च वणकाए ॥५॥ अहवण सचित्तभीसो उ एगओ एगओ उ अच्चित्तो। एत्थवि चउकभंगो वुकमभेओ)त्थाइति(दुए कहा नस्थि६॥ जं पुण अचित्तदव्यं निक्खिप्पइ चेयणेसु मीसे( दव्वे )सु। तहिं मग्गणा 3 इणमो अणंतरपरंपरा होइ॥७॥ ओगाहिमायणंतर परंपरं पिढरगाइ पुढवीए। नवणीयाइ अणंतर परं नावमाईसु॥८॥ विज्झायमुस्मुरिंगालमेव अप्पत्तपत्तसमजाले। वोकंतेलीणे, जयणाए॥९॥ विझाउत्ति नदीसइ अग्गी दीसेइ इंधणे छूढ़े। आपिंगल अगणिकणा मुम्भुर निजाल इंगाले५५०॥ अप्पत्ता 3 चउत्थे जाला पिढरं तु पंचमे पत्ता। छठे पुण कण्णसमा जाला समइच्छिया चरिमे॥१॥ पासोलित्तकडाहे परिसाडी नत्थि तंपिय विसालोसोऽविय अचिरच्छूढो उच्छुरसो नाइउसिणो य॥२॥उसिणोदगंपिधेप्पड़ गुडरसपरिणामियं अणच्चुसिणीजंच अघट्टियकन्न घट्टियपडणमि मा अग्गी॥३॥ पासोलितकडाहेऽनच्चुसिणे अपरिसाडऽघट्टते। सोलस भंगविगप्या पढमेऽणुन्ना न सेसेसु ॥४॥ | पयसमदुगअब्भासे माणं भंगाण तेसिमा रयणा। एगंतरिय लहुगुरु दुगुणा दुगुणा य वामेसु॥५॥ दुविहविराण उसिणे छड्डण हाणीय भाणभेओयोवाक्खित्ताणंतरपरंपरा पप्पडिय वत्थी॥६॥ हरियाइअणंतरिया परंपरं पिढरमाइसुवर्णमिोपूपाई पिट्ठऽणंतर श्री पिण्डनियुक्ति सूत्र॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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