Book Title: Agam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 112
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सुण्यवंत। वन्नाइ अन्नमुण्याइयंति किं तं भवे भोज ? ॥२॥ केई भांति पहिए अट्ठा (द्धा ) णे मंसपेसिवोसिरणी संभारिय परिवेसा वट्ट )ण वारेइ सुओ करे घेत्तुं ॥ ३ ॥ अविलाकरहीखीरं ल्हसुण पलंडू सुरा य गोमंसं । वेयसमएवि अभयं किंचि अभोजं | अपेज्जं च ॥४॥ वन्नाइजुयावि बली सपललफलसेहरा असुइनत्था । असुइस्स विप्पुसेणवि जह छिक्काओ अभोज्जा ( हुंति भिक्खा ) ओ ॥५॥ एमेव उज्झियंमिवि आहाकम्मंमि अकयए कप्पे । होइ अभोजं भाणे जत्थ वसुर्द्धपि तं पडियं ॥६॥ वंतुच्चारसरिच्छं कम्मं सोउमवि कोविओ भीओ। परिहरइ सावि य दुहा विहिअविहीए य परिहरणा ॥७॥ साली ओअणहत्थंद | भइ अविकोविओ देंतिं । कत्तोच्चउत्ति साली? वणि जाणइ पुच्छ तं गंतुं ॥८॥ गंतूण आवणं सो वाणियगं पुच्छए कओ | साली ? | पच्चंते मगहाए गोब्बरगामो तहिं वयई ॥९ ॥ कम्मासंकाए पहं मोत्तुं कंटाहिसाव्या अदिसि । छायंपि विवज्जंतो डज्झइ | उण्हेण मुच्छाई ॥ २०० ॥ इय अविहीपरिहारी नाणाईणं न होइ आभागी । दव्वकुलदेसभावे विहिपरिहरणा इमा तत्थ ॥ १ ॥ | ओयणसमिइमसत्तुगकुम्मासाई उ होंति दव्वाई। बहुजणमप्पजणं वा कुलं तु देसो सुट्ठाई ॥ २ ॥ आयरज्णायर भावे सयं व अन्नेण वाऽवि दावणया। एएसिं तु पयाणं चउपय तिपया व भयंणा ॥ ३ ॥ अणुचियदेसं द(स )व्वं कुलमप्पं आयरो य तोपुच्छा । | बहुएवि नत्थि पुच्छासदेसदविए अभावेऽवि ॥४॥ तुज्झट्ठाए कयमिणमन्त्रोन्नमवेक्खए य सविलक्ख । व (त) जंति गाढरूट्ठा का भे तत्तित्ति वा गिण्हे ॥५॥ गूढायारा न करेंति आयरं पुच्छियावि न कहेंति । थोवंति व नो पुट्ठा तं च असुद्धं कहं तत्थ ? ॥६॥ ॥ श्री पिण्डनिर्युक्ति सूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित १५ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only

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