Book Title: Agam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 121
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मच्छर माइक्ख पंतावे॥५॥इयरोऽविय पंतावे निसि ओसवियाण तेसि दिक्खा यो तम्हा उ न घेत्तव्यं कइ वा जे ओसमेहिंति?॥६॥ ऊणहिय दुब्बलं वा खर गुरु छिन्नं मइल असीयसह । दुव्वन्नं वा नाउ विपरिणमे अन्नभणिओ वा॥७॥ एगस्स भाणजुत्तं न 3 | बिइए एवमाइजेसुगुरुपाभूले ठवणं सो दलयइ अनहा कलहो॥८॥आइन्नमणाइन्न निसिहाभिहडं च नोनिसीहं चीनिसिहाभिहडं ठप्पं वोच्छामी नोनिसीहं तु॥९॥ सग्गाम परग्गामे सदेस परदेसभेव बोद्धव्यं दुविहं तु परग्गामे जलथल नावोडुजंघाए॥३३०॥ जंधा बाह तरीइ व जले थले खंधआरखुरनिबद्ध संजमआयविराहण तहियं पुण संजमे काया ॥१॥अत्थाहगाहपं(घं )कामगरोहारा जले अवाया कंटाहितेणसाव्य थलंमि एए भवे दो॥२॥ सग्गामेऽविय दुविहं तरं नोतरं चेवा तिघरंतरा परेणं तरं तंतु नायव्वं ॥३॥ नोधरंतरऽणेगविहं वा(पा)डगसाहीनिवेसणगिहेसोकाये खंधे भिन्मय कंसेणवतंत आणेजा॥४॥ व असइ कालो पायं व पहेणगं व पासुत्ता इय एइ काइ घेत्तुं दीवेइ य कारणं तं तु॥५॥ एसेव कमो नियमा निसिहाभिहडेऽवि होइ नायव्यो। अविइअदायगभावं निसीहिअंतं तु नायव्व॥६॥ अइदूरजलंतरिया कम्मासंकाए मा न घेच्छंति। आणेति संखडीओ सड्ढो सड्ढी व पच्छत्र॥७॥ निगम देउल दाणं दियाइ सत्राइ निग्गए दाणी सिटुंमि सेसगमणं दितऽन्ने वारयतेऽन्ने ॥८॥ भुंजण अजीर पुरिमड्ढगाइ अच्छंति भुत्तसेसं वा। आगमनिसीहिगाई न भुंजई सावगासंका॥९॥ उक्खित्तं निक्खिय्यइ आसगयं मल्लगंमि पासगए। खामित्तु गया सड्ढा तेऽवि य सुद्धा असढभावा॥३४०॥ लद्धं( नीयं) पहेणगं में अभुगत्थगयाए संखडीए वा। श्री पिण्डनियुक्ति सूत्र॥ | २४ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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