Book Title: Agam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir
भवे अछिन्नो यो सो कप्पइ इयरी उण अदिदिठ्ठो वऽणुन्नाओ॥५॥ अणिसिट्ठमणुन्नायं कप्यइ घेत्तुं तहेव अढिी जड्डस्स य अनिसिटुं न कप्पई कप्पइ अदिटुं॥६॥ निवपिंडो गयभत्तं गहणाई अंतराइयमदिनी डोंबस्स संतिएवि हु अभिक्ख वसहीय | फेडणया॥७॥ अझोयरओ तिविहो जावंतिय सघरमीसपासंडे। मूलंमि य पुवकये ओयरई तिण्ह अट्ठाए॥८॥ तंडुलजलआयाणे
पुष्फफले सागवेसणे लोणे। परिमाणे नाणत्तं अझोयरमीसजाए य॥९॥ जावंतिए विसोही सघरपासंडिभीसए पूई। छिन्ने विसोहि दिन्नम कप्पई न कप्पई सेसं॥३९०॥ छिन्नंमि तओ उक्कड्ढियंमि कप्पइ पिहीकए सेसी आहावणाए दिन्नं च तत्तियं कप्पए सेसं॥१॥ एसो सोलसभेओ, दुहा कीरई उगमो। एगो विसोहिकोडी, अविसोही 3 चावरा॥२॥ आहाकम्मदेसिय चरमतिगं पई | मीसजाए यो बायरपाडियाविय अझोयरए य चरिमदुगं॥३॥ उगमकोडी अवयव लेवालेवे य अकयए कप्पे। कंजियआयामगचाउलोयसंसट्टपूईओ॥४॥ सुक्केणऽवि जं छिक्कं तु असुइणा धोवए जहा लोए। इह सुक्केणऽवि छिवं धोवइ कमेण भाणं तु?॥२८॥भा०। लेवालेवत्ति जं वुत्तं, जंपि दव्वमलेवडं। तंपि घेत्तुं ॥ कप्पंति, तक्काइ किमु लेवडं?॥९॥ आहाय जं कीरइ तं तु कम्म, वजेहिही ओयणभेगमेव। सोवीर आयाभग चाउलो वा( दगं), कम्मति तो तागहणं करेंति॥३०॥ भा० सेसा विसोहिकोडी भत्तं पाणं विगिंच जहसत्ति। अणलक्खिय भीसदते सव्वविवेगेऽवयव सुद्धो॥५॥ दव्वाइओ विवेगो दव्वे जं दव्व
जं जहिं खेने। काले अकालहीणं असढो जं पस्सई भावे॥६॥ सुक्कोल्लसरिसपाए असरिसपाए य एत्थ चउभंगो। तुल्ले तुलनिवाए || श्री पिण्डनियुक्ति सूत्र॥
| २८]
पू. सागरजी म. संशोधित
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147