Book Title: Agam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
| अट्टाए । कलुणाणं अच्छेज्जं (त्तुं ) साहूण न कम्पए घेत्तुं ॥१॥ आहारोव हिमाई जइ अट्ठाए उ कोइ अच्छिदे । संखडि असंखडीए तं गिण्हंते इमे दोसा ॥२॥ अचियत्तमंतरायं तेनाहड एगऽणेगवोच्छेओ । निच्छु भणाई दोसा तस्स अ(वियालs ) लंभे य जं पावे ॥३॥ | तेणो व संजयट्ठा कलुणाणं अप्पणी व अट्ठाए। वोच्छेय पओसं वा न कप्पई कम्पऽणुन्नायं ॥४॥ संजयभद्दा तेणा आयंती वा | असंथरे जइणं । जइ देति न घेत्तव्वं निच्छुभ वोच्छेउ मा होजा ॥ ५ ॥ घयसत्तुयदिट्टंतो (तेणगरुएण घेत्तुं ) समणुन्नाय व घेत्तुणं | (गिहीवि) पच्छा। दें (वें)ति तयं तेसिं चिय समणुन्नाया व भुंजंति ॥६॥ घयसत्तुगदिट्टंतो अंबापाए य तम्पिया पियरो। काममकामे धम्मो णिओइए अम्हवि कयाई ॥४ प्र० ॥ अइमसि पडिकु अणुनायं कप्पए सुविहियाणी लड्डुग चोल्लग जंते संखडि खीरावणाईसु ॥७॥ बत्तीसा सामन्ने ते कहिँ हाउं गयत्ति इअ वुत्ते । परसंतिएण पुन्नं न तरसि काउंति पच्चाह ॥८ ॥ अविय हु बत्तीसाए दिन्नेहिं तवेग मोयगो न भवे । अष्पवयं बहुआयं जइजाणसि देहि तो मज्झं ॥ ९ ॥ लाभिय नेंतो पुट्ठो किं लद्धं ? नत्थि पच्छिमो दाए । इयरोऽवि आह नाहं देमित्ति सहोढ चोरत्ति ॥ ३८० ॥ गिण्हण कड्ढण ववहार पच्छकड्डुड्डाह पुच्छ (तहय) निव्विसए । | अपहुंमि हुंति दोसा पहुंमि दिन्ने तओ गहणं ॥ १ ॥ एमेव य जंतंभिवि (चतल्लग) संखडि खीरे य आवणाईसुं। सामन्नं पडिकुटुं | कप्पड़ घेत्तुं अणुन्नायं ॥ २ ॥ चुल्लत्ति दारमहुणा बहुवत्तव्वंति तं कथं पच्छा। वन्ने गुरू सो पुण सामियहत्थीण विन्नेओ ॥३॥ छिन्नमछिन्नो दुविहो होइ अछिन्नो निसिद्ध अणिसिट्ठो। छिन्नंमि चुल्लगंमी कप्पड़ घेत्तुं निसिद्वं मि ॥४॥ छिन्ने दिट्ठमदिट्ठो जो य निसिट्ठी
॥ श्री पिण्डनिर्युक्ति सूत्रं ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
२७
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147