Book Title: Agam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 126
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्थ् दुवे दोन्नऽतुल्ला उ॥७॥ सुक्के सुझं पडियं विगिंचि होइ तं सुहं पढमो। बीयंभि दवं छोढुं गालंति दवं कर दाउं॥८॥ तइयंभि कर छोढुं उल्लिंचइ ओयणाइ जं तरउ। दुलहदव्वं चरिमे तत्तियमित्तं विगिंचंति ॥९॥ संथरे सव्वमुझंति, चउभंगो असंथरे। असढो सुझई जे(ते )सुं, मायावी जेसु बझई॥४०॥ कोडीकरणं दुविहं उगमकोडी विसोहिकोडी योउगमकोडी छक्कं विसोहि कोडी अणेगविहा॥१। नव चेव अढारसगं सत्तावीसा तहेव चउपना। नई दो चेव सया उ सत्तरी होइ कोडीणं॥२॥ सोलस उगमदोसे गिहिणो 3 समुढ़िए वियाणाहि। उपायणाए दोसे साहूउ समुट्ठिए जाण॥३॥णाणं ठवणा दविए भावे उपायणा मुणेयव्वा दव्वंमि होइ तिविहा भावंमि उ सोलसपया 3॥४॥आसूयमाइएहिं बालचियतुरंगबीयमाईहिं। सुयआसदुमाईणं उप्यायणया उ सच्चित्ता॥५॥ कणगरययाइयाणं जहेतृधाउविहिया 3 (ही य) अच्चित्ता। भीसा उ सभंडाणं दुपयाइक्या 3 उप्पत्ती॥६॥ भावे पसत्थ इयरो कोहाउप्यायणा 3 अपसत्थो। कोहाइजुया थायाइणं च नाणाइ उ पसत्था॥७॥धाई दूइ निमित्ते आजीव वणीमगे तिगिच्छ। यो कोहे माणे माया लोभे य हवंति दस एए॥८॥ पुदिपच्छासंथव विज्जा मंते य चुन्न जोगे यो उप्यायणाइ दोसा सोलसमे भूलकम्मे | य॥९॥खीरे य मजणे मंडणे य कीलावणंकटाई यो एकेकाविय दुविहा करणे कारावणे चेव ॥४१०॥धारेइ धीयए वा धयंति वा तमिति तेण धाई ३। जहविहवं आसि पुरा खीराई पंच धाईओ॥१॥ खीराहारो रोवइ मन्झ कयासायदेहि णं पिज्जे। पच्छ। व मझ दाहिसि अलं व भुजो व एहामि॥२॥ मइमं अरोगि दीहाउओ य होइ अविभाणिओ बालो। दुल्लभयं खु सुयमुहं पिजाहि In श्री पिण्डनियुक्ति सूत्र॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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