Book Title: Agam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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तीसुवि अकप्पी पडिकुटुं तत्थत्थं अन्नत्थगयं अणुनाय॥२॥ कम्भियकद्दममिस्सा चुल्ली उक्खा य फड्डगजुया 31 उवगरणपूइमेयं डोए दंडे व एगयरे॥३॥ दव्वीछूटेत्ति जं वुत्तं, कम्मदव्वीए जं दए। कम्मं घट्टिय सुद्धं तु, घट्टए (टेआ) हारपूइयं॥४॥ अत्तद्विय आयाणे डायं लोणं च कम्म हिंगुं वा तं भत्तपाणपूई फोडण अन्नं व जं छुहइ ॥५॥ संकामे कम्मं सिद्धं जंकिंचि तत्थ छूट वा। अंगारधूमि थाली वेसण हेट्ठा मुणीहि( कम्भियवेसण अंगारथाली हेट्ठामुही) धूभो॥६॥ इंधणधूमेगंधेअवयवमाईहिं सुहुमपूई । सुंदरमेयं पूई चोयग भणिए गुरू भणइ॥७॥ इंधणधूमेगंधे अवयवमाई न पूइयं होइ। जेसिं तु एस पूई सोही नवि विजए तेसिं॥८॥ इंधणअगणीअवयव धूमो बप्फो य अत्रगंधो या सव्वं फुसंति लोयं भनइ सव्वं तओ पूई ॥९॥ नणु सुहुमपूइयस्सा पुव्वुविस्सऽसंभवो एवं। इंधणधूमाईहिं तम्हा पूइत्ति सिद्धमिण॥२६०॥ चोयग! इंधणमाईहिं चहिवि सुहुमपूइयं होइ। पन्नवणामित्तमियं परिहरणा नत्युि एयस्स॥१॥ सज्झमसझंकज सझं साहिज्जए न 3 असोजो उ असझं साहइ किलिस्सइ नतं च साहेई॥२॥आहाकम्मियभायणपफोडण काउ अकयए कप्पो गहियं तु(ति)सुहुमपूई धोवणमाईहिं परिहरणा॥३॥धोयंपि निराक्यवं न होइ आहच्च कम्मगहणमि। न य अहव्वा 3 गुणा भन्नई सुद्धा कओ एवं?॥४॥ लोएवि असुइगंधा विपरिणया दूरओ न दूसंदि। न य मारंति परिणया दूरगाय अवि विसावयवा॥५॥ सेसेहि ३ दहिं जावइयं फुसइ तत्तियं पूई। लेवेहि तिहि उपई कप्पड़ कप्पे कर तिगुणे॥६॥ इंधणमाई मोत्तुं चउरो सेसाणि होति दव्वाइंतेसिं पुण परिमाणं त्यप्पमाणाउ आरब्भ७॥ श्री पिण्डनियुक्ति सूत्र
पू. सागरजी म. संशोधित
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