Book Title: Agam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 117
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पढमदिवसंमि कम्भ तिन्त्रि 3 दिवसाणि पूइयं होइ। पूईसु तिसु न कप्पइ कप्पइ तइओ जया कथ्यो॥८॥समणकडाहाकम्मं सभणाणं |ज कडेण भीसं तु। आहार उवहि वसही सव्वं तं पूइयं होइ॥९॥ सड्ढस्स थेवदिवसेसु संखडी आसि संघभत्तं वा। पुच्छित्तु | निउणपुच्छं संलावाओ वगारीणं॥२७०॥ मीसज्जायं जावंतियं च पासंडिसाहुमीसं च। सहसंतरं न कप्पइ कप्पइ कप्ये कए तिगुणे॥१॥ दुग्गासे तं समइच्छिउं व अद्धाणसीसए जत्ता सड्ढी बहुभिक्खयरे मीसज्जायं करे कोई॥२४॥भा० जावंतहा सिद्धं नेयं( न एइ) तं देह कामियं जइणी बहुसु व अपहुप्यते भणाइ अन्नपि रंधेह ॥२॥ अत्तट्ठा रंधते पासंडीणपि बिइयओ भाइ। निगंथट्ठा तइओ अत्थट्टाएऽवि रयते (सो होइ) ॥३॥ विसधाइयपिसियासी मुरइ तमनोवि खाइ3 मरइ। इय पारंपरभरणे अणुभाइ सहस्ससो जाव॥४॥एवं मीसज्जायं चरणप्पं हणइ साहु सुविसुद्धा तम्हा तं नो कप्पइ पुरिससहस्संतरगयंपि॥ निच्छोडिए करीसेण वावि उव्वट्टिए तओ कप्या। सुक्खावित्ता गिण्हइ अन्न चउत्थे असुक्के वि॥६॥ सट्टाणपट्टाणे दुविहं ठवियं तु होइ नायव्वी खीराइ पंपरए हत्थगय तरं जाव॥७॥ चुल्ली उवचुल्ली वा ठाणसठाणं तु भायणं पिढरे। सट्ठाणद्वाणमि य भायणठाणे य चउभंगो॥२५॥भा छब्बगवारगमाई होइ पढाणमो वणेगविही सट्ठाणे पिढरे छब्बगे य एमेव दूरे य ॥८॥एकेकं तं दुविहं अणंतर परंपरे य नायव्वं। अविकारि कयं दव्वंतं चेव अणंतरं होई॥९॥ उच्छुक्खीराईयं विगारि अविगारि घ्यगुलाईयो परियावज्जणदोसा ओयणदहिमाईयं वावि॥२८०॥ उभट परिन्नायं अन्नं लद्धं पओयणे घेच्छी। रिणभीया व अगारी दहित्ति दाहं श्री पिण्डनियुक्ति सूत्र॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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