Book Title: Agam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 118
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir || सुए ठवण॥१॥ नवणीय मथुतकं व जाव अत्तट्ठिया व गिण्हंति। देसूणा जाव ध्यं कुसणंपिय जत्तियं काल॥२॥ रसककवपिंडगुलामच्छंडियखंडसकराणं चहोइ परंपठवणा अन्नत्थ व जुज्जए जत्थ॥३॥ भिक्खग्गाही एगत्थ कुणइ बिइओ 3 दोसु उवओगी तेण परं उक्खित्ता पाहुडिया होइ ठवणा 3॥४॥ पाहुडियावि हु दुविह। बायरं सुहुमा य होइ नायव्वा। ओसक्कणमुस्सकण कब्बट्ठीए समोसरणे॥५॥ कन्तामि ताव पेलुं तो ते दाहामि पुत्त! मा रोवो तं जइ सुणेइ साहू न गच्छए तत्थ आरंभो॥२६॥भा० अनट्ठ उद्विया वा तुब्भवि देमित्ति (दाहामि) किंपि परिहरति। किह दाणि न उद्विहिसी? साहुपभावेण लब्भामो॥२७॥भा० मा ताव झंख पुत्तय! परिवाडीए इहेहि सो साहू। एयस्स उहिया ते दाहं सो विवज्जेइ ॥६॥ अंगुलियाए |घेत्तुं कड्ढइ कप्पटुओ घरं जत्तो( तेणं)। किंति कहिए न गच्छइ पाहुडिया एस सुहुमा उ॥७॥ पुत्तस्स विवाहदिणं ओसरणे अइच्छिए मुणिय सड्ढा ओसवंतोसरणे संखडिपाहेणगदवट्ठा॥८॥ अप्पत्तंमि य ठवियं ओसरणे होहिइत्ति उस्सकणी तं पागडमियरं वा करेइ उज्जू अणुजू वा॥९॥मंगलहेउं पुन्नट्ठया व ओसक्कियं दुहा पगयो उस्सक्कियंपि किंति य पुढे सिटे विवजति॥२९०॥पाहुडिभत्तं भुंजइन पडिकभए य तस्स ठाणस्साएमेव अडइ बोडो लुक्कविलुको जह कवोडो॥१॥लोयविरलुत्तमंगं तवोकिसं जालखरियसरीरं। जुगमेत्तंतरदिष्टुिं अतुरियचवलं सगिहभिंत॥२॥दठूण य ( तम)णगारं सड्ढी संवेगमागया काई विपुलऽन्नपाण घेत्तूण निग्गया निग्गओ सोऽवि॥३॥ नीयदुवारंमि घरे न सुझई एसशत्तिकाऊणी नीहंमिए अगारी अच्छइ विलिया वऽगहिएणं॥४॥ श्री पिण्डनियुक्ति सूत्र॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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