Book Title: Agam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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परपक्खो 3 गिहत्था समा समणीउ होइ उ सपक्खोफासुकडं रद्धं वा निट्ठियमियरं कडं सव्वं ॥७॥ तस्स कडनिट्ठियंभी अनस्स कडंमि निहिए तस्सो चउभंगो इत्थं भवे चरमदुगे होइ कप्पं तु॥८॥ चउरो अइक्कम वइक्कमो य अइयारतह अणायारो निद्दरिसण चउण्हवि आहाकम्मे निमंतणया॥९॥ सालीघयगुलगोरस नवेसु वलीफलेसु जाएसुं। दाणे अहिगमसड्ढे आहाय कए निमंतेइ॥१८०॥ आहाकम्मरगहणे अइकमाईसु वट्टए चउसु। नेउरहारिगहत्थीचउतिगदुगएगचलणेणं॥१॥ आहाकम्मामंतण पडिसुणमाणे अइक्कमो होइ। पयभेयाउ वइक्कम गहिए तइएयरो गिलिए॥२॥ आणाइणो य दोसा गहणे जं भणियमह इमे ते
आणाभंगऽणवत्था मिच्छत्त विराहणा चेव॥३॥ आणं सव्वजिणाणं गिण्हंतोतं अइक्कमइ लुद्धो।आणं चऽइक्कभंतो कस्साएसा कुणइ सेसं?॥४॥ एक्केण कयमकज रेइ तप्पच्च्या पुणो अन्नो सायाबहुलपरंपर वोच्छे ओसंजमतवाणं॥५॥ जो जहवायं न कुणई मिच्छट्ठिी तओ हु को अनो?। वड्ढेइ य मिच्छत्तं परस्स संकं जणेमाणो॥६॥ वड्ढेइ तथ्यसंगं गेही य परस्स अप्पणो चेवा सजियंपि भिन्नदाढो न मुयइनिधसो पच्छ।॥७॥ खद्धे निद्धे य रुया सुत्ते हाणी तिगिच्छणे काया। पडियरगाणवि हाणी कुणइ किलेसं किलिस्संतो॥८॥ जह कम्मं तु अप्पं तच्छिकं वाऽवि भायणठियं वा। परिहरणं तस्सेव य गहियमदोसं च तह भणइ॥९॥ अब्भोजे गमणाइ य पुच्छ। दव्वकुलदेस( खित्त )भावे यो एव जयंते छलणा दिद्वंता तस्थिमे दोन्नि॥१९०॥ जह वंतं तु अभोज भत्तं जइविय सुसक्यं आसि। एवमसंजमवमणे अणेसणिज्जं अभोजं तु॥१॥ मजारखइयमंसा मंसासित्थि कुणिमं श्री पिण्डनियुक्ति सूत्र॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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