Book Title: Agam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 60
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassa garsuri Gyanmandir करचरछिन्नेऽन्थ् णियले य॥८॥ तद्दोसगुम्विणीबालवच्छकंडंतपीसभजती। कत्ती पिजंती भइया दगमाइणो दोसा॥९॥ कप्पट्टिगअप्पाहणदिन्ने अन्नोत्रगहणपजती खंतियमग्गणदिनं उड्डाहपदोसचारभडा॥२४१॥भा० अप्पभु भयगाईया उभएगतरे पदोस पहु कुज्जा थेरे चलंत पडणं अप्पभुदोसा य ते चेव॥२॥ आयपरोभयदोसा अभिक्खगहणमि खुब्मण नपुंसे। लोगदुगुंछ। संका एरिसगा नूणमेतेऽवि॥३॥अवयास भाणभेदो वमणं असुइत्ति लोगउड्डाहो। खित्ते य दित्तचित्ते जक्खाइडे य दोसा ॥४॥ करछिन्न असुइ चरणे पडणं अंधिल्लए य छकाया। नियलाऽसुइ पडणं वा तद्दोसी संकमो असुइ॥५॥ गुव्विणि गब्भे संघट्टणा 3 उटुंति निविसमाणीयो बालाई मंसडग मज्जाराई विराहेजा॥६॥ बीओदगसंघट्टण कंडणपीसंत भजणे डहणी कत्ती पिंजंती हत्थे लित्तम उदगवह ॥२४७॥भा०। भिक्खामेत्ते अवियालणं तु बालेण दिजमाणमि। संदिढे वा गहणं अइबहुयवियालऽणुन्नाओ॥४७०॥ अप्पहुसंदिढे वा भिक्खामित्ते व गहणऽसंदिढे। थेरपहू थरथरते धरणं अहवा दढसरी ॥१॥ पंडगअप्पडिसेवी मत्तो सड्ढोवअप्पसागरिए खिताइ भद्दगाणं करचर बिटुऽप्यसागरिए॥२॥सड्ढोव अन्नरंभण अंधे सवियारणा य बद्धमि। तद्दोसए अभिन्ने वेला थणजीवियं थेरा॥३॥ उक्खित्तऽपच्चवाए कंडे पीसे वाछूढ भजन्ती। सुवं व पीसमाणी बुद्धीय | विभावए सम्मा४॥ मुसले उक्खित्तमि य अपच्चवाए य पीस अच्चित्ते। भजती अच्छुढे भुंजन्ती जा अणारद्धा॥२४८ भा० कतंतीए थूलं विक्षिण लोढण जतिय निद्ववियो पिंजण असोयवाई भयणागहणं तु एएसिं॥५॥गमणं च दायगस्सा हेढा उवरि ||श्री ओघनियुक्तिसूत्र | ४९ । पू. सागरजी म. संशोधित | For Private And Personal Use Only

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