Book Title: Agam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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गणणपमाणं पमाणमाणं अओ वुच्छं॥६८०॥ तिणि विहत्थी चउरंगुलं च भाणस्स मज्झिमपमाणी इत्तो हीण जहनं अइरेगतरं तु उक्कोस॥१॥ इणमण्णं तु पमाणं नियगाहाराउ होइ निष्फनी कालपमाणपसिद्धं उदरपमाणेण य वयंति॥२॥ उकोसतिसामासे दुगाउअद्धाणमागओ साहू चउरंगुलूणभरियंज पजत्तं तुसाहुस्स॥३॥एयंचेवपमाणं सविसेसयरं अणुग्गहपवत्ती कतारे दुभिक्खे रोहगमाईसु भइयव्वं ॥४॥ वेयावच्चगरो वा नंदीभाणं घरे उवगहियो सो खलु तस्स विसेसो पमाणजुत्तं तु सेसाणं ॥३२१॥ भा०॥ दिजाहि भाणपूरंति रिद्धिमं कोवि रोहमाईसु। तत्थवि तस्सुवओगो सेसं कालं तु पडिकुट्ठो॥५॥ पायस्स लक्खणमलक्खणं च भुजो इमं वियाणित्ता। लक्खणजुत्तस्स गुणा दोसा य अलक्खणस्स इमे॥६॥ वढं समचरंसं होइ, थिरं थावरं च वण्णं चो हुंडं वायाइद्धं, भिन्नं च अधारणिजाई॥७॥संठियंमि भवे लाभो, पतिद्वा सुपतिहितो निव्वणे कित्तिमारोग्गं, वनड्ढे नाणसंपया॥८॥ हुंडे चरित्तभेदो सबलंमि य चित्तविब्भमं जाणो दुप्पत खीलसंठाणे गणेच चरणे च नो ठाणं॥९॥ एउमुष्पले अकुसलं, सव्वणे वणमादिसे। अंतो बहिं च दड्ढमि, मरणं तत्थ उ निदिसे ॥६९०॥ अकरंडगम्मि भाणे हत्थो उर्दु जहा न घट्टेइ। एयं जहन्नयमुह वत्थु पप्या विसालं तु॥१॥ छक्कायरक्खणहा पायगहणं जिणेहिं पन्नत्ती जे य गुणा संभोए हवंति ते पायगहणेवि॥२॥ अतरंतबालवुड्ढासेहाएसा गुरू असहवग्गो। साहारणोग्गहालिद्धिकारणा पादगहणं तु॥३॥ पत्ताबंधपमाणं भाणपमाणेण होइ कायव्वी जह गठिमि कयंमि कोणा चरंगुला हुंति॥४॥ पत्तट्ठवणं तह गुच्छओ य पायपडिलेहणीआ यो तिण्हंपि य प्यमाणं ॥श्री ओपनियुक्तिसूत्र॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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