Book Title: Agam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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महरिसीणं ॥१॥ एयं घासेसणविहिं जुजता चरणकरणमाउत्ता। साहू खवंति कम्म अणेगभवसंचियमणंतं ॥२॥ एत्तो परिठ्ठवणविहिं वोच्छामि धीरपुरिसपन्नत्तं । जं नाऊण सुविहिया करेंति दुक्खक्खयं धीरा ॥३॥ भत्तहिअ उव्वरिअं अहव अभत्तद्रियाण जं सेसीसंबंधेणाणेण उ परिठावणिआ मुणेयव्या ॥३०४॥भा०सा पुण जायमजाया जाया मूलोत्तरेहि 3 असुद्धा। लोभातिरेगगहिया अभिओगकया विसकया वा ॥५॥ मूलगुणेहिं असुद्धं जं गहिअं भत्तपाण साहूहि। एसा 3 होइ जाता वुच्छं सि विहीए वोसिरणं ॥५॥ भा० एगंतमणावाए अच्चित्ते थंडिले गुरुवइटे। आलोएँ एमपुंज तिहाणं सावणं कुजा ॥६॥ लोभातिरेगगहिअं अहव असुद्धं तु उत्तरगुणेहिं । एसावि होति जाया वोच्छं सि विहीएँ वोसिरणं ॥६॥ भा० एगंतमणावाए अच्चित्ते पंडिले गुरुवढे आलोए दुनि पुंजा तिहाणं सावणं कुज्जा ॥७॥ दुविहो खलु अभिओगो दव्वे भावे य होइ नायव्यो। दव्वंमि होइ जोगो विजा मंता य भावमि ॥८॥ विज्जाएँ होअगारी अचियत्ता सा य पुच्छए चरिओ अभिमंतणोदणस्स 3 अणुकंपणमुझणंच खरे॥९॥बारस्स पिट्टणमि अपुच्छण कहणंच होअगारीए। सिढे चरियादंडो एवं दोसा इहंपि सिया १६००॥ जोगमि ३ अविरइया अझुववना सरूवभिक्खूमिा कडजोगमणिच्छंतस्स दे भिक्खं असुभभावे ॥१॥ संकाए स नियट्टो दाऊण गुरुस्स काइयं निसिरे । तेसिपि असुभभावो पुच्छ। उ ममापि उज्झायणा ॥२॥ एमेव विसकयंमिवि दाऊण गुरुस्स काइयं निसिरे। गंधाई वित्राए उन्झगमविही सियालवहे ॥३॥ एवं विजाजोए विसंजुत्तस्स वावि गहियस्सो पाणच्चएवि नियमुझणा 3 वोच्छं श्री ओपनियुक्तिसूत्र।
पू. सागरजी म. संशोधित
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