Book Title: Agam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तम्हा पडियं विगिंचिजा ॥१॥ अणभोगेण भएण य पडिणी उम्मीस भत्तपाणमि । दिजा हिरण्णमाइ आवजण संकणा दिढे | ॥२॥ उक्खेवे निक्खेवे महल्लया लुद्धया वहो दाहो । अचियते वोच्छेओ छक्कायवहो य गुरुमते ॥३॥ गुरुदवेण व पिहिअं सयं व गुरुयं हवेज जं दव्व। उक्खेवे निक्खेवे कडिभंजण पाय उवरि वा ॥९॥ भा०। महल्लेण देहि मा डहरएण भित्रे अहो इमो लुद्धो । उभएगतरे व वहो दाहो अच्चुण्ह एमेव ॥२६०॥ बहुगहणे अचियत्तं वोच्छेओ तदन्नदव्व तस्सवियो छकायाण य वहणं अइमत्ते तंमि मत्तंमि॥२६१॥भा० तिविहो य होइ कालो गिम्हो हेंमततह य वासासु। तिविहो य दायगो खलु थी पुरिस नपुंसओ चेव॥४॥एकिकोविअतिविहो तरुणो तह मज्झिमो यथेरो योसीयतणुओ नपुंसो सोम्हित्थी मज्झिमो पुरिसो॥५॥ पुरकम्मं उदउल्लं ससिणिद्धं तंपि होइ तिविहं तु। इकिकंपिय तिविहं सच्चित्ताचित्तमीसं तु॥६॥ आइदुवे पडिसेहो पुरओ कय जंतु तं पुरेकम्म। उदउल्लबिंदुसहिअं ससिणिद्धे भग्गणा होइ॥७॥ ससिणिद्धंपिय तिविहं सच्चित्ताचित्तमीसगं चेव। अच्चित्तं पुण ठप्पं अहिगारो मीससच्चित्ते ॥८॥ पव्वाण किंचि अव्वाणमेव किंचिच्च होअणुव्वाणी पाएण हि यात सव्वं एकहाणी य वुड्ढी य॥९॥ सत्तविभागण कर विभायइत्ताण इत्थिमाईणी निन्नुनयइयरेविय रेहा पव्वे करतले य॥४९०॥ जाहे य उन्नयाई उव्वाणाई हवंति हत्थस्सा ताहे तल पव्वाणा लेहा पुण होतऽणुव्वाणा॥१॥ तरुणित्थि एकभागे पव्वाणे होइ गहण गिम्हासु। हेमंते दोसु भवे तिसु पव्वाणेसु वासासु॥२॥ एमेव मन्झिमाए आढत्तं दोसु ठायए चउसु। तिसु आढत्तं थेरी नवरि हाणेसु पंचसु ॥३॥ एमेव || ॥श्री ओघनियुक्तिसूत्र॥
पू. सागरजी म. संशोधित
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147