Book Title: Agam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वसहि जा पढमा। तह चेवेगाणीए आगाढे चिलिमिली नवरं॥९॥ निकारणिअंचमढण कारणिअंनेइ अहव अव्याहे। गमणित्यि मीससंबंधिवजिए असइ एगागी॥८०॥ एगबहू सभणुण्णाण वसहीए जो य ए। अमणुत्रो। अभणुनसंजईण य अण्णहिँ एक्कं चिलिमिलीए॥१॥ विहिपुच्छाए पवेसो सण्णिकुले चेइ पुच्छ साहम्भी। अन्नत्य अस्थि इह ते गिलाणकज्जे अहिवडंति॥२॥सव्वंपि न घेत्तव्वं निमंतणे जं तहिं गिलाणस्सो कारणि तस्स य तुझ य विउलं दव्वं तु पाउगं॥३॥ जाए दिसाए गिलाणो ताए दिसाए । उ होइ पडियरणा। पुव्वभणिअंगिलाणो पंचण्हवि होइ जयणाए॥८४॥ तेसि पडिच्छण पुच्छण सुटुकयं अस्थि नत्थि वा लंभो। खग्गूडे विलओलणदाणमणिच्छे तहिं नयण ॥३५॥ भा०। पंतं असहू करित्ना निवेयण गहण अहव समणुना। खंगूड देहि तं चिअ कमढग तस्सप्पणो पाए॥६॥ किं कीर3? जं जाणसि अतरंति सढेत्ति वच्च तं भंते!। निद्धम्मा न करेंती करणमणालोइय सहाओ॥७॥उभओ निद्धभ्मेसुं फासुपडीआर इयरपडिसेहो।परिमिअदाण विसज्जण सच्छंदोद्धंसणा गमणं॥८॥एस गमो पंचण्हवि होइ नियाइण गिलाणपडियरणे। फासुअकरण निकायण कहण पडिक्कामणा गमणं॥९॥ संभावणेऽविसहो देउलि अखरंट जयण उवएसो। अविसेसण्हिगाणविन एस अहं तओ गमणं॥४०॥ तारेहि जयणकरणे अमुगं आणेहऽकप्प जणपुरओ। नवि एरिसया समणा जयणाए तओ अवक्कमणं॥१॥ चोअगवयणं आणा आयरिआणं तु फेडिआ तेणी साहम्मिअकज्जबहत्त्या य सुचिरेणवि न गच्छे ॥२॥ तित्थगराणा चोयग! दिलुतो भोइएण नरवडणाजत्तुग्गय भोइअ दंडिए अ घरदार पुव्वकए॥३॥रण्णो तणघरकरणं ||श्री ओपनियुक्तिसूत्र।। पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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