Book Title: Agam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 41
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उस्सासाई पुरतो अविणीयमग्गओवाऊोनिक्खम पवेसवजण भावासण्णो गिलाणाई॥३॥भारे वेयणखभगुण्हमुच्छपरियावछिंदणे कलहो। अव्वाबाहे ठाणे सागारपमजणा जयणा॥४॥ संडास पमज्जिता पुणोवि भूमि पमज्जिा निसिए। राओ य पुव्वभणिों तुयट्टणं कप्पई - दिवा॥५॥ अद्धाणपरिस्संतो गिलाणवुड्ढा अणुण्णवेत्ताणी संथारुत्तरपट्टो अत्थरण निवजणाऽऽलोग६॥ उवगरणाईयाणं गहणे निक्खेवणे य संकमणे ठाण निरिक्वपमजण काउं पडिलेहए उवहिं॥७॥उवगरण वत्थपाए वत्थे पडिलेहणं तु वोच्छामि। पुवण्हे अवरण्हे मुहणंतगमाइ पडिलेहा॥१५८॥ भाष्यो उड्ढं थिरं अतुरिअंसव्वं ता वत्थ पुव्व पडिलेहे। तो बिइअं | पकोडे तइयं च पुणो पमज्जेजा॥५॥ वत्थे काउड्डेमि य परवयण ठिओ गहाय दसियंते। तं न भवति उक्कुडुओ तिरिअं पेहे जह विलितो॥१५९॥भा०॥धेत्तुं थिरं अतुरिअंतिभाग बुद्धीय चक्खुणा पेहे।तो बिइयं पफोडे तइयं च पुणो पमज्जेजा॥१६०॥भा०॥ अणच्चाविअं अवलिअं अणाणुबंधि अभोसलिं चेवा छप्पुरिमा नव खोडा पाणी पाणपमजणं॥६॥ वत्थे अप्पाणमि य चउहअणच्चाविअं अवलिअं च। अणुबंधि निरंतरया तिरिउड्ढह य घट्टणा मुसली॥१६१॥भा० आरभडा सम्मदा वजेयव्वा य भोसली तइया। पप्फोडणा चउत्थी विक्खित्ता वेइया छट्ठा॥७॥ वितहकरणे च तुरिअं अण्णं अण्णं व गेण्हणाऽऽरभडा। अंतो व होज कोणा निसियण तत्थेव संभहा॥२॥ भा०। मोसलि पुबुद्दिवा पप्फोडण रेणुगुंडिए चेवा विक्खेवं तुक्खेवो वेइयपणगं च छद्दोसा ॥३॥ भा०। पसिढिल पलंब लोला एगामोसा अणेगरूवधुणा। कुणइ पमाणपमायं संकियगणणोवगं कुज्जा॥८॥ ॥श्रीओघनियुक्तिसूत्र। पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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