Book Title: Agam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 53
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassa garsuri Gyanmandir भाणे एवं दो तिण्णि वा घटे॥१॥अनोऽन्न अंकमि उ अन्नं घट्टेइ वारवारेण आणेइ तमेव दिणं दवंरए अभत्तट्ठी॥२॥अभट्ठियाण दाउं अनेसि वा अहिंडमाणाणी हिंडेज्ज असंथरणे असहू घेत्तुं अइयं तु॥३॥ न तरेज्जा जइ तिण्णि हिंडावे तओ य छारेणी उच्चुण्णे हिंडइ अन्ने य दवं सि गेण्हंति॥४॥ लेत्थारियाणि जाणि ३ घट्टरमाईणि तत्थ लेवेणी संजमफाइनिमित्तं ताई भूईई गुंडेजा॥५॥ एवं लेवग्गहणं आणयणं लिंपणा य जयणा यो भणियाणि अतो वोच्छं परिकम्मविहिं तु लेवस्स॥६॥ लित्ते छगणिअछारो घणेण चीरेणऽबंधि उण्हे। अंछण परियतण घट्टणे य धोवे पुणो लेवो॥७॥ दाउं सरयत्ताणं पत्ताबंधं अबंधणं कुजा साणाइरक्खणट्ठा पमज्ज छाउण्हसंकमणा॥२१०॥ तद्दिवसं पडिलेहा कुंभमुहाईण होइ कायव्वा। छन्ने य निसं कुज्जा क्यकजाणं विउस्सग्गो॥२११॥मा०। अड्डगहे लेवाहियं तु सेसं सरूवगं पीसे। अहवावि नत्यि कजं सरूवमुझे तओ विहिणा॥८॥पढमचरिमा सिसिरे गिम्हे अद्धं तु तासि वजेजा। पायं ठवे सिणेहातिरक्खणहा पवेसो वा॥९॥उवओगंच अभिक्खं करेइ वासाइरक्खणहए।वावारेइ व अन्ने गिलाणमाईसु कजेसु॥४००॥ एक्को व जहन्नेणं दुग तिग चत्तारि पंच उक्कोसा। संजमहे लेवो वजित्ता गारवविभूसा॥१॥अणुवटुंते तहवि हु सव्वं अवणित्तु तो पुणो लिंपे। तजाय सच्चोप्पडगं घट्टगरइयं ततो थोवे॥२॥ तज्जायजुत्तिलेवो खंजणलेवो य होइ बोद्धव्यो। मुद्दिअनावाबंधो तेणयबंधेण पडिकुट्ठो॥३॥ जुत्ती 3 पत्थराई पडिकुट्टो सो उ सनिही जे णी दय सुकुमार असन्निहि खंजणलेवो अओ भणि॥४॥ संजमहे लेवो न विभूसाए वदंति तित्थयरा। सइ असइ ॥श्रीओपनियुक्तिसूत्र] पू. सागरजी म. संशोधित [ ४२ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147