Book Title: Agam 41 Mool 02 Ogh Pind Niryukti Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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जइ करेइ उवओगी सोएण चक्खुणा पाणओ य जीहाए फासेणं॥८॥ पडिलेहणियाकाले फिडिए कल्लाणगं तु पच्छित्तो पायस्स पासु बेटो सोयादुवउत्त तल्लेसो॥१७४॥ भा०। मुहणंतएण गोच्छं गोच्छगगहिअंगुलीहिं पडलाइं। उकुडुयभाणवत्थे पलिमंथाईसु तं न भवे॥९॥चउकोण भाणकण्णं पमज पाएसरीय तिगुणं तु भाणस्स पुष्पगं तो इमेहिं कजेहिं पडिलेहे ॥२९०॥ भूसयरयउकेरे, घणसंताणए इयो उदए मट्टिआ चेव, एमेया पडिवत्तिओ॥१॥ नवगनिवेसे दूराउ उक्लेरो मूसएहिं उकिण्णो। निद्धमहि हरतणू वा ठाणं भेत्तूण पविसेज्जा॥२॥ कोत्थलगारिअघरगंधणसंताणाझ्या व लग्गेजा। उकेरं सहाणं हरतणु संचिट्ठ जा सुक्को॥३॥ इयरेसु पोरिसितिगं संचिक्खावेत्तु तत्तिअंछिंदे। सव्वं वावि विगिंचइ पोराणं मट्टिताहे ॥४॥ पत्तं पमजिऊणं अंतो बाहिं सई तु पफोडे। केइ पुण तिणि वारा चउरंगुल भूमि पडणभया॥५॥ विंटिअबंधणधरणे अगणी तेणे य दंडियक्खोभे। उउबद्ध धरणबंधण वासासु अबंधणा ठवणा॥२७६॥ रयताण भाण धरणा उउबद्ध निक्खिवेज वासासु। अगणीतेणभएण व रायक्वोभे विराहणया॥१७५॥ मा०। परिगलमाणा हीरेज्ज डहणा भेया तहेव छक्काया। गुत्तो व सयं डझे हीरेज व जं च तेण विणा॥६॥ वासासु नत्थि अगणी नेव य तेणा 3 दंडिया सत्था। तेण अबंधणठवणा एवं पडिलेहणा पाए॥७॥ भा० अणावायमसंलोए अणवाए चेव होइ संलोए। आवायमसंलोए आवाए चेव संलोए॥७॥ तत्थावायं दुविहं सपक्सपरपक्खओ य णायव्व। दुविहं होइ सपक्खे संजय तह संजईणं च॥८॥ संविग्गमसंविग्गा संविग मणुण्णएयरा चेवा असंविग्गावि दुविहा तप्पक्खियएअरा ॥श्री ओघनियुक्तिसूत्र।
पू. सागरजी म. संशोधित ||
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